Summer Camp , No TimePass (टाइमपास नहीं होते समरकैंप )। No Timepass Summer Camp| Camp, For Summer Timepass
यह सच है कि आज अभिभावक बच्चों के सर्वांगीण विकास को लेकर काफी जागरुक हैं वे बच्चों की शिक्षा व स्वास्थ्य के साथ -साथ शिक्षेतर गतिविधियों में उनकी भागीदारी व श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए भी प्रयासरत हैं। इसके बावजूद प्रतिभा को निखारने के लिए अभ्यास तथा आगे मार्गदर्शन न दिलवाने के कारण,वे अपने बच्चों की प्रतिभा के अनुरूप मुकाम तक पहुंचाने में अक्सर असफल ही दिखते हैं।
यकीनन इसका कारण शैक्षणिक क्षेत्र में दिनोंदिन बढ़ती प्रतियोगिया ही है। शैक्षणिक सत्र के आरंभ होते ही नर्सरी से लेकर बड़ी कक्षाओ में पढ़ने वाले बच्चों पर भी 'स्कूल कैलेंडर ' के हिसाब से अपनी दिनचर्या तय करने का दबाव रहता है। वार्षिक परीक्षाओं तक हर परीक्षा में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर अच्छे अंक पाना ही उनके स्कूली जीवन का लक्ष्य बन जाता है। ऐसी स्थिति में बच्चों की रुचि शौक या हुनर से जुड़ा कोई भी प्रशिक्षण भले ही वह संगीत नृत्य,खेल,चित्रकारी आदि कुछ भी हो, के लिए समय देना अभिभावकों को रास नहीं आता क्योंकि वे समझते हैं कि बच्चा यदि इस सबके लिए समय और ध्यान देगा ,तो पढ़ाई में पिछड़ जायेगा।
इन्हीं धारणाओं पर आधारित सोच के कारण आजकल बच्चों को केवल गर्मी की लंबी छुट्टियों में उनकी कला,रुचि या प्रतिभा के अनुरूप प्रशिक्षण दिया जाता है। व्यवसायिकता के इस युग में गली - मोहल्ले से लेकर शिक्षण संस्थानों व बड़े शॉपिंग मॉल कर में संगीत से लेकर फाइन आर्ट एवं अभिनय से लेकर जुडो -कराटे तक की अनेक विधाओं का प्रशिक्षण अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ समर -कैंप के माध्यम से देते हैं।
आज हर दूसरा बच्चा किसी न किसी तरह का प्रशिक्षण लेता भी है,मगर अफसोस !अधिकांश अभिभावक उन्हें गर्मी के लम्बी दिनों में व्यस्त रखने या धूप में जाने से रोकने के लिए ही ऐसे किसी कैंप या क्लास में भेजते हैं।अधिकांश घरों में प्रशिक्षण के दौरान बच्चों द्वारा बनाई पेंटिंग या गुड़िया दीवान - खाने में सजाकर मेहमानों से प्प्रशंसा प्राप्त का बच्चे की पीठ तो थपथपवा ली जाती है , स्कूल खुलते ही पेंटिंग का सामान,गुड़िया,क्रिकेट का बैट या गिटार, बच्चों की पहुंच से दूर ' परछती ' पर चढ़ा दिया जाता है।
देखा जाये तो ऐसा करके अभिभावक अपना नुकसान ही करते है प्रशिक्षण के लिए दिया गया समय एवं फीस के साथ साथ लगन से हासिल बच्चों का 'हुनर ' प्रायः अभ्यास के अभाव में लुप्त हो जाता है।
यदि हम बच्चों की रुचि के अनुसार उन्हें प्रशिक्षण के लिए भेजते हैं, तो यह आवश्यक है कि छुट्टियों में सीखी कला या खेल के अभ्यास का उन्हें अवसर दिया जाए। गंभीरता से किसी भी विधा, को सीखना यदि बच्चों का काम है , तो उनकी रुचि एवं संलग्नता बनाए रखने की जिम्मेदारी पालकों की ही है।
देखा जाए तो इसके लिए पालकों को कोई खास प्रयास भी नहीं करना पड़ता। इतना ही करना होगा कि यदि बिटिया ने समरकेम्प में मेहंदी का ' कोन ' लाकर दिया जाए या बेटे ने क्रिकेट के ' गुर ' सीखे हैं ,तो हफ्ते में दो बार उसे घंटे भर के लिए ही सही,बैट - बॉल के साथ ग्राउंड में खेलने की छूट मिले।
कई बच्चों को किसी शौक का जुनून इस हद तक होता है कि वे इसके लिए अपना खेलने या टीवी देखने का समय उपयोग में लाते है. ऐसी स्थिति में हमारा थोड़ा - सा प्यार , सहयोग और प्रोत्साहन उन्हें संबंधित क्षेत्र में सफल बना सकता है।
सर्वोतम तो यही होगा कि अभिभावक छुट्टियो में लगने वाले ' समरकैम्प ' में बच्चों को व्यस्त रखने का माध्यम मात्र न समझकर , किसी भी कला या हुनर को प्राप्त करने का सुअवसर समझें। बच्चे यदि इस प्रशिक्षण को गंभीरता से नहीं लेते,तो उन्हें भी इस तथ्य से अवगत कराएं।
स्कूल खुलने के बाद भी अभिभावक यदि पढ़ाई और सीखे गए हुनर के बीच सामंजस्य बनाकर उन्हें प्रोत्साहन व सहयोग दें अभ्यास का अवसर व छूट दें, तो यह छोटा सा प्रयास बच्चों को भले ही कोई बड़ा कलाकार या खिलाड़ी न बना सके , एक शौक के रूप में विकसित होकर उम्रभर के लिए खुशी या आनंद, संतुष्टि और सुख प्राप्त करने की राह ज़रूर दिखा देगा।
बच्चे सादे कागज पर लकीरें भी खीचें,तो उन्हें नजरअंदाज न करें। हो सकता है यह लकीरें ही भविष्य में उन्हें सफलता की बुलंदियों तक पहुंचने का रास्ता सुझाएं। अभिभावक होने के नाते उन्हें आपका प्रोत्साहन और मार्गदर्शन चाहिए और चाहिए थोड़ा सा प्यार, जो उन्हें बेहतर करके दिखाने की प्रेरणा और ऊर्जा दोनों देगा। उनकी सोच को आकार देकर जरूर देखिए
बच्चो ने समरकैम्प में जो कुछ सीखा, यदि उसे आपकी तरफ से दोहराने का अवसर या छूट मिल जाए, तो हो सकता है कि बच्चा शौक को अपना हुनर बना ले। समरकैम्प में गुजरे वक्त को टाइमपास न माने बल्कि देंखे कि बच्चे आगे कहां तक बड़ सकता है.....
यह सच है कि आज अभिभावक बच्चों के सर्वांगीण विकास को लेकर काफी जागरुक हैं वे बच्चों की शिक्षा व स्वास्थ्य के साथ -साथ शिक्षेतर गतिविधियों में उनकी भागीदारी व श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए भी प्रयासरत हैं। इसके बावजूद प्रतिभा को निखारने के लिए अभ्यास तथा आगे मार्गदर्शन न दिलवाने के कारण,वे अपने बच्चों की प्रतिभा के अनुरूप मुकाम तक पहुंचाने में अक्सर असफल ही दिखते हैं।
यकीनन इसका कारण शैक्षणिक क्षेत्र में दिनोंदिन बढ़ती प्रतियोगिया ही है। शैक्षणिक सत्र के आरंभ होते ही नर्सरी से लेकर बड़ी कक्षाओ में पढ़ने वाले बच्चों पर भी 'स्कूल कैलेंडर ' के हिसाब से अपनी दिनचर्या तय करने का दबाव रहता है। वार्षिक परीक्षाओं तक हर परीक्षा में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर अच्छे अंक पाना ही उनके स्कूली जीवन का लक्ष्य बन जाता है। ऐसी स्थिति में बच्चों की रुचि शौक या हुनर से जुड़ा कोई भी प्रशिक्षण भले ही वह संगीत नृत्य,खेल,चित्रकारी आदि कुछ भी हो, के लिए समय देना अभिभावकों को रास नहीं आता क्योंकि वे समझते हैं कि बच्चा यदि इस सबके लिए समय और ध्यान देगा ,तो पढ़ाई में पिछड़ जायेगा।
इन्हीं धारणाओं पर आधारित सोच के कारण आजकल बच्चों को केवल गर्मी की लंबी छुट्टियों में उनकी कला,रुचि या प्रतिभा के अनुरूप प्रशिक्षण दिया जाता है। व्यवसायिकता के इस युग में गली - मोहल्ले से लेकर शिक्षण संस्थानों व बड़े शॉपिंग मॉल कर में संगीत से लेकर फाइन आर्ट एवं अभिनय से लेकर जुडो -कराटे तक की अनेक विधाओं का प्रशिक्षण अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ समर -कैंप के माध्यम से देते हैं।
आज हर दूसरा बच्चा किसी न किसी तरह का प्रशिक्षण लेता भी है,मगर अफसोस !अधिकांश अभिभावक उन्हें गर्मी के लम्बी दिनों में व्यस्त रखने या धूप में जाने से रोकने के लिए ही ऐसे किसी कैंप या क्लास में भेजते हैं।अधिकांश घरों में प्रशिक्षण के दौरान बच्चों द्वारा बनाई पेंटिंग या गुड़िया दीवान - खाने में सजाकर मेहमानों से प्प्रशंसा प्राप्त का बच्चे की पीठ तो थपथपवा ली जाती है , स्कूल खुलते ही पेंटिंग का सामान,गुड़िया,क्रिकेट का बैट या गिटार, बच्चों की पहुंच से दूर ' परछती ' पर चढ़ा दिया जाता है।
देखा जाये तो ऐसा करके अभिभावक अपना नुकसान ही करते है प्रशिक्षण के लिए दिया गया समय एवं फीस के साथ साथ लगन से हासिल बच्चों का 'हुनर ' प्रायः अभ्यास के अभाव में लुप्त हो जाता है।
यदि हम बच्चों की रुचि के अनुसार उन्हें प्रशिक्षण के लिए भेजते हैं, तो यह आवश्यक है कि छुट्टियों में सीखी कला या खेल के अभ्यास का उन्हें अवसर दिया जाए। गंभीरता से किसी भी विधा, को सीखना यदि बच्चों का काम है , तो उनकी रुचि एवं संलग्नता बनाए रखने की जिम्मेदारी पालकों की ही है।
देखा जाए तो इसके लिए पालकों को कोई खास प्रयास भी नहीं करना पड़ता। इतना ही करना होगा कि यदि बिटिया ने समरकेम्प में मेहंदी का ' कोन ' लाकर दिया जाए या बेटे ने क्रिकेट के ' गुर ' सीखे हैं ,तो हफ्ते में दो बार उसे घंटे भर के लिए ही सही,बैट - बॉल के साथ ग्राउंड में खेलने की छूट मिले।
कई बच्चों को किसी शौक का जुनून इस हद तक होता है कि वे इसके लिए अपना खेलने या टीवी देखने का समय उपयोग में लाते है. ऐसी स्थिति में हमारा थोड़ा - सा प्यार , सहयोग और प्रोत्साहन उन्हें संबंधित क्षेत्र में सफल बना सकता है।
सर्वोतम तो यही होगा कि अभिभावक छुट्टियो में लगने वाले ' समरकैम्प ' में बच्चों को व्यस्त रखने का माध्यम मात्र न समझकर , किसी भी कला या हुनर को प्राप्त करने का सुअवसर समझें। बच्चे यदि इस प्रशिक्षण को गंभीरता से नहीं लेते,तो उन्हें भी इस तथ्य से अवगत कराएं।
स्कूल खुलने के बाद भी अभिभावक यदि पढ़ाई और सीखे गए हुनर के बीच सामंजस्य बनाकर उन्हें प्रोत्साहन व सहयोग दें अभ्यास का अवसर व छूट दें, तो यह छोटा सा प्रयास बच्चों को भले ही कोई बड़ा कलाकार या खिलाड़ी न बना सके , एक शौक के रूप में विकसित होकर उम्रभर के लिए खुशी या आनंद, संतुष्टि और सुख प्राप्त करने की राह ज़रूर दिखा देगा।
बच्चे सादे कागज पर लकीरें भी खीचें,तो उन्हें नजरअंदाज न करें। हो सकता है यह लकीरें ही भविष्य में उन्हें सफलता की बुलंदियों तक पहुंचने का रास्ता सुझाएं। अभिभावक होने के नाते उन्हें आपका प्रोत्साहन और मार्गदर्शन चाहिए और चाहिए थोड़ा सा प्यार, जो उन्हें बेहतर करके दिखाने की प्रेरणा और ऊर्जा दोनों देगा। उनकी सोच को आकार देकर जरूर देखिए
बच्चो ने समरकैम्प में जो कुछ सीखा, यदि उसे आपकी तरफ से दोहराने का अवसर या छूट मिल जाए, तो हो सकता है कि बच्चा शौक को अपना हुनर बना ले। समरकैम्प में गुजरे वक्त को टाइमपास न माने बल्कि देंखे कि बच्चे आगे कहां तक बड़ सकता है.....