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Common Ailments Of Children

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Children Ailments | 

नन्हे मरीज़ के रोग बड़े 
छोटे बच्चों को रोग जल्दी पकड़ते हैं और इनके लक्षण आप भांप नहीं पातीं। हम यहां तीन ऐसे रोगों की चर्चा कर रहें हैं , जिनसे आमतौर पर अभिभावकों को जूझना पड़ता है।

बुखार में झटके आना
छह माह से लेकर पांच वर्ष के बच्चों में बुखार के दौरान झटके आना प्रायः देखा जाता है। कुछ बच्चों में झटके तेज बुखार में (102 डिग्री फॉरेनहाइट के ऊपर ) आते है परंतु कुछ में बुखार 100 डिग्री होने के पहले ही झटके आ सकते हैं।  पांच वर्ष की उम्र के बाद अधिकतर बच्चों में बुखार के साथ झटके आना खुद -ब -खुद बंद हो जाता है

क्या करें
घर में पैरासिटामोल / इब्रूफेन सिरप हमेशा रखें। पैरासिटामोल की खुराक बच्चे के वजन के हिसाब से दी जाती है। यह माप बच्चे के प्रतिकिलो वज़न पर 15 मिलीग्राम होती है। अतः खुराक देते समय बच्चे का वजन  जरूरध्यान में रखें।
* पैरासिटामॉल का असर 1 से 2 घंटे में होता है , इसलिए बग़ैर इंतजार किए बच्चे के शरीर पर तुरंत ठंडे पानी की पट्टी करना शुरू कर दें। इससे बुखार ज करें ल्दी कम हो जाएगा।

* हमेशा थर्मामीटर का करें। शरीर छूकर बुखार का पता लगाने का प्रयास न करें , विशेषकर अगर आपके बच्चे को बुखार में झटके आते हों , तो।

*झटके की प्रवृति वाले बच्चों के माता पिता को घर में डायजीपाम स्पोजिटरी ( दवा युक्त वैक्स की बत्ती ) रखनी चाहिए।  झटके आने पर इसे मल -द्वार से तुरंत अंदर दाल देने से झटके जल्दी रुक जाते हैं।

*झटकों के वक्त बच्चों को मुंह से कुछ भी नहीं देना चाहिए -न पानी , न दवा। कारण का पता लगाकर उचित इलाज कराएं , अन्यथा बच्चे को बार - बार बुखार और झटके आएंगे।  याद रखी , हर बार झटके के दौरान दिमाग की कुछ कोशिकाएं  नष्ट हो जाती हैं।


नाक से खून बहना ( नकसीर फूटना )
बच्चे की नाक से खून बहता देख आमतौर पर माता पिता घबरा जाते हैं जबकि असलियत यह है कि सही स्थान पर नाक को पर्याप्त समय तक दबाए रखने से 90 प्रतिशत नकसीर फूटने को बंद किया जा सकता है।  नाक से रक्तस्राव के प्रमुख कारण है : गर्म - खुश्क मौसम , नाक पर चोट लगना , बच्चे द्वारा नाक में उंगली डालना , नाक में इन्फेक्शन होना , नाक में कुछ वस्तु डाल लेना आदि।

क्या करें
बच्चे को आगे की तरफ थोड़ा झुकते हुए बैठने को कहें। उन्हें को लिटा देने से खून गले के रास्ते पेट में जाता रहता है और हम समझते हैं कि रक्त बहना रुक गया है। कुछ देर बाद जब काली खून भरी उल्टी होती है , तब घर में हाहाकार मच जाता है। अधिकांश रक्त नाक के शुरूआती भाग में स्थित बारीक रक्त नलिकाओं के फटने से आता है।  अतः नाक के अगले हिस्से को दबाने पर यह रुक जाता है।  इस दौरान बच्चे को मुंह से सांस लेने को कहना चाहिए।  रक्त के क्लॉट ( थक्का जमना ) होने का सामान्य समय है 5 से 7 मिनट , इसलिए नाक को लगभग 10 मिनट तक दबाए रखने से रक्तस्राव रुक जाता है । अगर नाक पर से प्रेशर जल्दी हटा लिया जाएगा , तो पुनः रक्त बहना शुरू हो जाएगा।  अगर रक्तस्राव नहीं रुकता है ,तो रुई की बत्ती बनाएं, उसे वैसलीन लगाकर चिकना करें और नाक में डालें तथा ऊपर से नाक को पुनः 10 मिनट के लिए दबाएं।  अगर आप के घर में नेसिवियान नेज़ल ड्राप उपलब्ध है , तो आप रुई की बत्ती पर वैसलीन की जग़ह इनका प्रयोग कर सकते हैं।  रक्त रुकने पर बत्ती को रात भर के लिए नाक में पड़ा रहने दें और अगली सुबह संभाल कर धीरे -धीरे बाहर निकाले।  इसके बाद भी रक्तस्राव नहीं रुकता है , तो बच्चे को तुरंत चिकित्सक के पास ले जाएं। जिन बच्चों की नकसीर बार - बार फूटती है , उनकी नाक में गर्म मौसम के दौरान वैसलीन लगाना चाहिए।  बच्चे के नाखून छोटे रखें और उसे नाक में उंगली डालने से रोके

डिहाड़ड्रेशन 
बच्चों के डिहाड़ड्रेशन (शरीर में पानी की कमी ) का प्रमुख कारण डायरिया होता है।  छोटे बच्चों में रोटावायरस डायरिया , डिहाड़ड्रेशन का प्रमुख कारण है। अगर बच्चा साथ में उल्टियां भी कर रहा है , तो शरीर में पानी की कमी होने का खतरा और भी बढ़ जाता है। 

डिहाड़ड्रेशन के खतरे के लक्षण 
बच्चा सुस्त पड़ जाता है। आंखे धसी दिखती हैं। त्वचा का लचीलापन खत्म हो जाता हैं।  पेट के ऊपर की त्वचा को अंगूठे और तर्जनी से पकड़ ,ऊपर उठाकर छोड़ने पर त्वचा या तो टेंट की तरह उठी रह जाती है या बहुत धीरे -धीरे से वापस जाती है।  जीभ खुश्क और सूखी रहती है। बुखार रहता है।  सांस तेज चलती है। पेशाब कम और गाढ़ा पीला होने होने लगता है। 

क्या करें 
बच्चे को ओआरएस का घोल दें। इसके दो प्रकार के पैकेट आते है : 200 मिली यानि 1 गिलास पानी में घोलने वाला और 1000 मिली या एक लीटर पानी में घोलने वाला।  आप घर में भी ओआरएस बना सकती हैं। एक लीटर साफ पानी में एक चम्मच नमक और आठ चम्मच शककर मिलाएं।  इसे 12 घंटे के अंदर ही इस्तेमाल करें। घर वाले ओआरएस में पोटेशियम नहीं होता।  इससे ताजा नींबू का रस मिलाने से इस समस्या का हल कुछ हद तक हो जाता हैं।  बच्चे को दूध एवं भोजन देते रहें।  खतरे के लक्षण दिखने पर उसे तुरंत चिकित्सक को दिखाएं।  हो सकता है कि बच्चों को भर्ती कर ड्रिप लगाना पड़े।