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How To Protect Wood Furniture From Moisture In Hindi

How To Protect Wood Furniture From Moisture In Rainy Season In Hindi | Taking Good Care Of Wooden Furniture In Rainy Season |Protect Your Wooden Furniture This Mansoon | Wood Furniture Care Tips From Moisture

बारिश का मौसम यूं तो सबको ही अच्छा लगता है लेकिन समस्या तब आती है जब इस दौरान होने वाली सीलन से घर के महगें और सुन्दर फर्नीचर खराब होने लगते हैं। इसलिए बारिश के दौरान फर्नीचर्स की खास देखभाल करनी जरूरी है। 

*  लकड़ी के फर्नीचर्स को बारिश के दौरान खिड़कियों के पास न रखें।  बारिश के पानी से वो खराब हो सकती हैं या उनमें सीलन आ सकती है। 

*  बारिश में नमी के कारण लकड़ी के अधिकतर फर्नीचर्स में दीमक लग जाती है।  इसलिए इन्हें खुद साफ करने के बजाय किसी प्रोफेशनल की मदद से फर्नीचर पर एंटी टर्माइट सॉल्यूशन लगवाएं। 

*  बारिश के मौसम दरवाजे अक्सर जाम हो जाते है। इसलिए दरवाजों में पीतल के हैंडिल लगवाएं। इससे दरवाजों के जाम होने की समस्या कम होती है। 

*  मानसून में कभी लकड़ी के फर्नीचर्स को गीले कपड़ों से न पोछें क्योंकि एक तो बारिश की नमी,दूसरे डस्टिंग के कपड़े की नमी से उनके अंदर सीलन आ सकती है।  इसकी जगह सूखे कपड़े का इस्तेमाल सफाई के लिए करें। 

*  हो सके तो बारिश से पहले ही लकड़ी के फर्नीचर्स में रंग रोगन और वैक्स आदि करवा लें।  इससे उनमें जल्दी नमी आने का खतरा नहीं रहता है। 

*  रोजाना घर में मौजूद फर्नीचर्स को पोछें ताकि वो साफ सुथरे रहें।  इसके अलावा कहीं सीलन आदि हो रही है तो इसका पता भी तुरंत लग जाएगा। 

*  सीलन से फर्नीचर्स में बदबू आने लगती है। इस बदबू को दूर करने के लिए एक डिब्बे में चुने का पाउडर भर कर फर्नीचर्स के पास रख दें।  बदबू दूर भाग जाएगी। 

*  बारिश के दौरान अक्सर लकड़ी के दरवाजे - खिड़कियों की लकड़ियां फूल जाती हैं।  जिससे उन्हें खोलने और बंद करने में दिक्क़त आती है।  इसलिए उनमें पॉलीयुथ्रीन पॉलिश या इनेमल पेंट करवाएं।  ऐसा करने से लकड़ी फूलेगी नहीं। 

*  बारिश के दौरान फर्नीचर्स को चमकाने के लिए बाजार में विशेष प्रकार के रोगन मिलते हैं। जिसे आप बारिश के दौरान उपयोग में ला सकती हैं। 

*  बरसात बंद हो जाने के बाद खिड़कियां आदि खोल दें ताकि कमरे में हवा आ सके।  हवा से फर्नीचर में अगर नमी मौजूद होगी वो खत्म हो जाएगी

How To Prevent Cloths From Shrinking In Hindi

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कई बार कुछ कपड़े धोने के बाद सिकुड़ जाते हैं।  सिकुड़े कपड़ों को वापस शेप में लाने के लिए करें यह उपाय। 

* एक चम्मच बेबी शैम्पू या हेयर कंडीशनर को एक चौथाई पानी में डाल मिश्रण बना लें।  अब इसे बाल्टी में डाल दें।  इस घोल में सिकुड़े कपड़े को डाल दें। 

*  एक पुराना अखबार लें और जो कपड़ा सिकुड़ा है , उसका अपने अंदाज से सही आकर बनाएं।  इसे  काट लें और पार्चमेंट पेपर पर इसकी आउटलाइन बनाएं।  ताकि बाद में यह पता चल सके कि आपको सिकुड़ा कपड़ा कितना खींचना है। 

*  उसके बाद घोल में से कपड़े को निकालकर पार्चमेंट पेपर पर बिछाएं और उसे हल्का - हल्का खींचे। 

*  कपड़े को स्ट्रेच करने के बाद उस पर कोई भारी सी वस्तु रखे दें ताकि कपड़ा सही से खींचा रहे।  सूखने पर वह अपने पुराने आकार में आ जाएगा। 

Best Tips For A Better Life After 40

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अक्सर 40 पार  होने पर हमें अहसास होने लगता है कि हमारी उम्र बढ़ रही है।  यह सही है कि बढ़ती उम्र को कोई नहीं रोक सकता है, यह प्रक्रिया तो निरंतर चलती रहती है लेकिन इस प्रक्रिया को हमें सुखद अहसास में बदलने का प्रयास करना चाहिए।  उम्र के बढ़ने पर निराश, कमजोरी या बीमारी नहीं बल्कि हम एक उल्लास, एक सफलता व ताजगी महसूस कर सकें , इसके लिए हमें स्वयं से प्यार करना होगा, अपनी जिम्मेदारी स्वयं लेनी होगी और अपने शरीर और अपने मन मस्तिष्क का  खुद रखना होगा।  सेहत भरे कुछ उपाय जिनसे आप सम्मान व उल्लास के साथ स्वयं को बढ़ता हुआ देखें 

*  शरीर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संतुलित आहार की अहम  भूमिका है।  अपने भोजन में हरी सब्जियां , फल, ताजा रस, फाइबर आदि को शामिल करें।  दिन में कम से कम आठ गिलास पानी जरूर पिएं। 

*  रिटायरमेंट , अकेलापन , काम न होना , अपने साथियों की मृत्यु , बीमारी , वित्तीय समस्या जैसी चीजें तनाव का बड़ा कारण बन सकती हैं , लेकिन इन सब चीजों को स्वयं पर हावी न होने दें।  अधिक समस्या होने पर काउंसलर की मदद लें और अपने करीबी दोस्तों को दिल की बात कहें। 

*  एक उम्र के बाद हमें लगता है कि अब हमें काम करना बंद कर देना चाहिए।  यहां तक सरकार भी आपको 60 
वर्ष का होने पर रिटायर कर देती है लेकिन यह धारणा आपके शरीर को और निढाल बना देती है। काम कभी न छोड़ें। 

*  व्यायाम व योग हमारे ह्रदय , फेफड़ो, हडिड्यों , मांसपेशियों व शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंगों को मजबूत कर, हमारी क्षमताओं को बढ़ाते है और हमें स्फूर्ति प्रदान करते हैं।  साथ ही हमें भी खेलकूद को बच्चों का खेल समझकर छोड़ नहीं देना चाहिए।  ये हमें तनाव और बोरियत से बचाते है और स्वस्थरखने में मददगार होते है 

*  किसी भी प्रकार की चोट लगने पर उसे अनदेखा न करें।  उसकी मेडिकल जांच करवाएं और पूरी तरह ठीक होने तक उसका ध्यान रखें।  यह न सोचे कि यह अपने आप ठीक हो जाएगी। 

*  नियमित रूप से अपना शारीरिक चैक अप करवाते रहें।  आपके डॉक्टर को आपके ब्लड प्रेशर, विटामिन्स  की जरूरतों , ह्रदय व अन्य महत्वपूर्ण अंगों का ख्याल रखने दें।  अपने खान पान व व्यायाम के बारे में भी सलाह लें। 

*  एक उम्र पार करने के बाद हम इन सब चीजों पर ध्यान देना बंद कर देते हैं।  हमें लगता है कि इन सब बातों के लिए हमारी उम्र नहीं रही , कोई क्या सोचेगा आदि।  लेकिन यह सोच गलत है।  खुद को मेंटेन करें। 

*  किसी भी प्रकार का नशा सेहत के लिए हानिकारक है।  यह हमारे महत्वपूर्ण व नाजुक अंगों को बुरी तरह से क्षति पहुंचाता है।  यह शौक किसी भी उम्र में सही नहीं हैं। 

Harmful Effects Of Earphones In Hindi | Earphones Bad Effects

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ईयरफोन लगाकर सड़क पर चलना, पढ़ना या काम करना युवाओं के आदत में शामिल हैं। सोते समय, यात्रा करते समय, यहां तक कि दफ़्तर में काम करते हुए वयस्क भी अब ईयरफोन के चस्के से अछूते नहीं बचे हैं।  इन तमाम ' संगीतप्रेमियों ' की सुनने की क्षमता पर खतरा मंडरा रहा है।  यह कोई सुनी - सुनाई बात नहीं है , पहले शोधों से साबित किया गया था, लेकिन अब तो बढ़ती रोगी - संख्याओं ने इसकी व्यावहारिक पुष्टि कर दी है। 
*  कानों के ऊपर लगे स्पीकर्स की तुलना में सीधे कान के अंदरूनी हिस्से में फंसे ईयरफोन के ईयरपीस  नुक़सान ही पहुंचाते हैं।  कानों की  नाज़ुक कोशिकाओं को , जो दिमाग तक ध्वनि पहुँचाने का काम करती हैं , ये ईयरफोन सबसे पहले क्षतिग्रस्त करती हैं। 

*  चाहे जिम में हों या सड़क पर या ट्रैकिंग , साइक्लिंग प्रैक्टिस पर , युवा ईयरफोन का वॉल्यूम काफ़ी ऊंचा रखते हैं , ताकि आसपास के माहौल से बचा जा सकें।  यह कान की क्षति को कई गुना बढ़ा सकता है \ और शरीर की क्षति को भी।  संगीत में खोए इंसान को शरीर के किसी हिस्से में हो रहे छोटे - मोटे  दर्द का अहसास नहीं होता।  यह मांसपेशियों में बड़ी चोट का पहला क़दम साबित हो सकता है। ख़ासतौर पर जिम में , जब वर्कआउट करते हुए रक्त फेफड़ों , दिल और शरीर के अन्य अंगों की तरफ़ दौड़ा जा रहा हो , तब इंद्रियों का जाग्रत रहना और भी ज़रूरी हो जाता है। 

*  सीधे कान में संगीत सुनने से कान के भीतर 110 डेसिबल तक की आवाज पहुंच सकती है, जो एक रॉक कन्सर्ट की ध्वनि के बराबर है।  सोच लीजिए , कान में रॉक कन्सर्ट बज रहा होगा, जब आप ईयरफोन लगाकर संगीत सुनेंगे।  शोधकर्ताओं ने पाया है कि चूंकि नुक़सान का अंदाज़ा नहीं हो पाता , तो लोग सुनने की शक्ति कम होने पर आवाज़ को और ऊंचा करते जाते हैं और कानों में जेट उड़ाने के स्तर तक भी पहुंच जाते हैं। 

*  ईयरफोन कई तरह के जीवाणु आदि को अपने ऊपर जमा कर सकते हैं।  इनके कान के भीतरी हिस्से में लगाते ही संक्रमण कान में फैलने लगता हैं। 

*  सड़क पर कारों , बसों के हॉर्न, हवाईजहाजों की आवाज या ट्रेनों की सीटियों से बचने के लिए ईयरफोन लगाने को लोग बाहर की आवाजों से मास्क करना या कानों को बचाना कहते हैं।  लेकिन यह बचाव कम डेसिबल की बिखरी हुई ध्वनि से कानों को बचाते हुए, सीधी तेज ध्वनि को अंदरूनी हिस्से तक पहुंचा देता है। 

*  शोधकर्ताओं व चिकित्सक चेतावनी दे रहे हैं कि 70 प्रतिशत से ज्यादा ऊंचे वॉल्यूम पर एक घंटे रोज़ ईयरफोन लगाकर संगीत सुनने वाले लोग चंद वर्षो में कुछ भी न सुन पाएं , तो हैरानी की कोई बात नहीं होगी।  लेकिन अपने ही हाथो से अपनी श्रवण शक्ति को ख़त्म कर देने की इस प्रक्रिया से ख़ुद को बचा लेना कितना आसान था, इसकी पीड़ा उस हैरानी से यक़ीनन कहीं बड़ी होगी। 

Home remedies (Ghralu Upaye) For Head Lice (Louse)

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नन्ही बिटिया को जोर - जोर से सिर खुजाते देखकर मां का चिंता में पड़ जाना लाजिमी है।  एक ही आशंका सताती है, कहीं यह जूं का प्रकोप न हो।  मामूली सी जूं, छोटे बच्चों के लिए बड़ी मुश्किलें पैदा कर सकती हैं।  फिर इनसे निजात पाना आसान भी कहा है। 
जूं अपने आप में बड़ी समस्या है, लेकिन इससे जुड़ी कई भ्रांतियां भी हैं। पहले उन्हीं को दूर कर लेते हैं। 

*  इनका बालों की साफ़ - सफ़ाई से कोई ताल्लुक नहीं है।  ये खोपड़ी की त्वचा से खून चूसती हैं।  ये साफ बालों में भी अपना यही काम जारी रखती हैं और गंदे में भी।  हां , गंदे बालों में इनकी तादाद बहुत ज्यादा हो सकती है। 

*  ये उड़कर या कूदकर किसी और के सिर में नहीं जा सकती।  केवल सिर जुड़ाकर बैठने से ही जुओं का एक सिर से दूसरे सिर में जाना हो सकता है।  

*  जूं संक्रमण की निशानी नहीं होतीं।  इस वजह से किसी बच्ची को दूर रखना ग़लत होगा।  हां , जिसके बालों में जुएं हों, उसकी कंघी, तौलिया और तकिया आदि कोई और इस्तेमाल न करें। 

*  घर के सारे लोगों के बालों में उपचार करना ज़रूरी नहीं है।  जिन को समस्या होने लगी है, उनका ही बस उस बालिका के साथ साथ और वैसा ही उपचार करने से इस परकोप से निजात पाई जा सकती है। 

*  जूं को होने से रोका जा सकता है , यह भी एक गलतफ़हमी है।  स्कूल जाने वाली छोटी बच्चियों में इनके होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है।  उनके सिर को हर हफ़्ते जांचते रहने से जूं के होने का पता लगाया जा सकता है।  केवल बचाव के नजरिए से तेज असर वाले सैम्पू या लोशन लगाना ठीक नहीं है। 

*  ये किसी के बालों में भी हो सकती है लम्बे बालों में इनका ठिकाना एकदम से नजर नहीं आता, इसलिए जूं इन्हें अक्सर निशाना बनाती हैं। 

कुछ घरेलू उपायों को अपनाकर भी जूओं से निजात पाया जा सकता है , जिससे हमारे बालों को भी कोई नुकसान नही होगा। 

*  नीम की पतियों को कुछ देर पानी में भिगोकर रखें और फिर इसका पेस्ट बनाकर बालों की जड़ों में अच्छी तरह लगाएं।  कुछ देर रहने दें , फिर धो दें।  कड़वी - सी गंध जरूर आएगी, लेकिन यह अचूक उपाय है. नीम के तेल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। 

*  यह भी थोड़ा गंध- भरा , लेकिन कारगर उपचार है।  एक बड़े प्याज को जूसर में पीसकर रस निकाल लें।  इसे रुई के फाहे की मदद से बालों की जड़ों में लगाकर कुछ देर रहने दें।  सामान्य तापमान वाले पानी से अच्छी तरह बालों को भी धो लें।  फिर कंघी करें।  मरी हुई जूं बाहर आ जाएंगी। 

*  तीन हिस्से पानी में एक हिस्सा सिरका डालकर रुई के फाहे की मदद से बालों की जड़ों में लगाएं।  सिर पर एक सफ़ेद कपड़ा बांधकर रात भर के लिए ऐसे ही रहने दें।  सुबह बालों को धो लें। 

ध्यान रखे कि ये सारे उपचार केवल जुओं को खत्म करेंगे, लिखों को नहीं।  इनको मारने के लिए उपचार को एक हफ़्ते बाद फिर दोहराने की जरूरत होगी। 

Vaastu Tips Increase Money | Lakshmi Prapti Upay In Hindi

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सभी की यही कामना रहती हैं कि घर में धन धान्य , सम्पदा , समृदि की बढ़त बनी रहे।  लेकिन यदि श्रदा - भक्ति से पूजन और कर्म करने के बाद भी आपकी मनोकामना पूरी नहीं हो रही है , तो इसकी वजह इन  वास्तु मान्यताओं में छुपी हो सकती है। 
भारतीय व चीनी वास्तु तथा मान्यताओं में ऐसी कई सावधानियां बरतने की हिदायत दी गई हैं, जिनको मानने से कहते हैं कि लक्ष्मी कृपा बनी रहती है। 

*  चीनी वास्तु के अनुसार कई दिनों तक घर के नल से पानी टपकता रहे, तो ऐसे घर में धन नहीं ठहरता।  कमाई अच्छी होने पर भी आर्थिक क्षय और अपव्यय की स्थिति बनी रहती है। 

* सुव्यवस्थित और साफ सुथरा वातावरण लक्ष्मी जी को पसंद है।  जाले लग रहे हों , धूल खाता, पुराना अनुपयोगी सामान इकट्ठा कर रखा हो, दीवार पर जगह जगह कीले लगी हों और सामान बिखरा हो, तो धन आगमन बाधित हो सकता है। 

* मंदिर की क्षमतानुसार ही मूर्तियां - चित्र रखें।  मंदिर में एक ही भगवान की एक से ज्यादा छवि न रखें।  मंदिर इतना न भरा हो कि देवों को पर्याप्त जगह ही न मिले।  पूजा के दौरान बातचीत न करने और पूरा ध्यान लगाने को भी कहा जाता है। 

* पैरों में विष्णु का वास माना गया है, इसलिए बुजुर्गो द्वारा अपने पैर के ऊपर पैर रखकर नहीं बैठने की हिदायत दी जाती है।  इससे यह भी आशंका रहती है कि असावधानीवश देव मूर्ति की दिशा में पैर न हो जाएं। 

*  झाड़ू को लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. क्योंकि यह गंदगी साफ करती  शाम के बाद झाड़ू न लगाने के लिए कहते हैं, क्योंकि कम रोशनी में किसी कीमती चीज के कचरे में चले जाने की आशंका रहती है। 

*  जहां परिवार में सभी मिल जुलकर रहते हैं और प्रीत की रीत ख़ुशी से निभाई जाती है, लक्ष्मी का वास उसी घर में होता है।  साथ ही घर के बुजुर्गो के प्रति आदरभाव रखें।  कभी भी उनका अपमान न करें , न ही किसी को ऐसा करने दें।  जिस घर में बड़ों का आदर न हो , कलह की स्थिति रहे, वहां लक्ष्मी कभी नहीं ठहरतीं। 

* रसोईघर में जूठन न छोड़ें।  इसे हमेशा साफ रखें।  खाना पकाते समय प्रसन्न रहें।  पकते भोजन को जूठा करना भी गलत माना जाता है। 

* पूजा के दौरान मंत्रो का उच्चारण स्पष्ट व शुद्ध होना चाहिए। 

* रुपयों को गिनते समय थूक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

* घर में अनायास उग आए वृक्षीय पौधे को न उखाड़े।  बहुत आवश्यक हो , तो उसे सावधानी से निकालकर ऐसे स्थान पर रोप दें, जहां वह पनपकर वृक्ष बन सके। 

* सर्प , मछली, कछुए तथा अन्य जीवों को परेशान करने या अकारण मारने वाला हमेशा ही दरिद्र रहता है। 

* जिस घर में आलस्य पसरा हो, वहां लक्ष्मी कभी नहीं ठहरतीं।  इसलिए सुबह देर तक सोने या हर काम को टालने से बचें। 

*  मंदिर में बैठने के आसन की सीधे हाथ से उठाएं।  इसे पैरों से सरकाने की गलती न करें। 

Benefits Of Coconut Water For Health In Hindi Font

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रोजाना एक गिलास नारियल पानी पिये।  इससे आपको ताजगी मिलेगी और सेहत दुरुस्त होगी। 

* नारियल पानी में पोटैशियम , विटामिन, मैग्नीशियम , एंजाइम्स और साइटोकाइन जैसे पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाएं जाते है , जिनसे अनेक स्वास्थ्यलाभ मिलते है। 

* इसमें मौजूद बायोएक्टिव एंजाइम्स शरीर की चयापचय और पाचन क्रिया में मददगार है। 

* यह पेय गलत खानपान के कारण होने वाले पेटदर्द से राहत देता है। 

* इसे पीने से शरीर में पानी की कमी दूर होती है वजन घटाने में मदद मिलती है , त्वचा और बालो की सेहत निखरती है। 

* यह पेय रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और संक्रमण के खतरे को कम कर अनेक बीमारियों से हमारी रक्षा करता है।  खासतौर पर ह्रदय, लीवर  और रक्तसंचार संबंधी समस्याओं से निजात दिलाने में मददगार है। 

* इसमें मौजूद पोटैशियम और मैग्नीशियम गुर्दे में होने वाली पथरी के खतरे को कम करते है। 

Important Of Money Poem In Hindi | Dhan Ka Mahatva

Important Of Money Poem In Hindi | Dhan Ka Mahatva। Money Important | Money Hindi Poem |

धन से शैय्या खरीदी जा सकती है, नींद नहीं। 
धन से पुस्तकें खरीदी जा सकती है, ज्ञान नहीं। 
धन से भोजन खरीदा जा सकता है, भूख नहीं। 
धन से दवाएं खरीदी जा सकती है, स्वास्थ्य नहीं। 
धन से मकान खरीदा जा सकता है, घर नहीं। 
धन से विलासिता खरीदी जा सकती है, सभ्यता नहीं। 
धन से आमोद - प्रमोद खरीदा जा सकता है , ख़ुशी नहीं। 
धन से प्रसाधन सामग्री खरीदी जा सकती है , सुन्दरता नहीं। 
धन से नौकर खरीदा जा सकता है, मित्र नहीं। 
धन से शक्ति खरीदी जा सकती है , प्रभाव नहीं। 
धन से इंसान खरीदें जा सकते है, इंसानियत नहीं।  

Best Useful Gharelu Nuskhe Free In Hindi | Desi Hindi Nuskhe

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पेट दर्द 
* एक चम्मच अदरक का रस और थोड़ा सा शहद मिलाकर चाटे। 
* नींबू के रस में एक चुटकी काला नमक, पिसी हुई थोड़ी सी काली मिर्च और पिसा हुआ जरा सा जीरा मिलाकर बूंद बूंद रस का सेवन करे। 
* एक चम्मच तुलसी का रस और एक चम्मच अदरक का रस गर्म करके पीने से पेट के दर्द में काफी लाभ होता है। 

अपच या अजीर्ण 
* दो लौंग , एक हरड़ का चूर्ण तथा एक  चुटकी सेंधा नमक का काढ़ा बनाकर सेवन करें। 
* प्याज के रस में थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर पीने से अपच की शिकायत जाती रहती है। 
* मूली के रस में शक़्कर मिलाकर पीने से अफरा तथा अपच दोनों दूर हो जाते है। 

दस्त या अतिसार 
* पीपल के दो पत्तो को पानी में उबालकर पानी पीये। 
* बेल का मुरब्बा सेवन करने से दस्त बंद हो जाते है। 
* दो चम्मच रीठे का पानी पीने से हर प्रकार के दस्त रूक जाते है। 

सिर दर्द 
* पानी में सोंठ पीसकर माथे पर लगाने से सर्दी से होने वाला सिर का दर्द रुक जाता है। 
* लोंग पिसकर पानी में घोलकर माथे पर चंदन की तरह लगाये। 
* छोटी इलायची के बीजों को पीसकर बार बार सूंघने से सिर दर्द में काफी आराम मिलता है। 

मुंहासे 
* नीम की निम्बोलियों का गूदा चेहरे पर लगाये। 
* मुलतानी मिट्टी को भिगोकर उसमें थोड़ी सी पिसी हुई हल्दी और जौ का आटा मिलाकर इसे स्नान से पहले चेहरे पर लगाये। 
* दही में चोकर मिलाकर चेहरे पर लगाए। 
* बेसन में पिसी हुई हल्दी, गाजर और टमाटर का रस मिलाकर चेहरे पर लगाना चाहिए। 

वमन या उल्टी 
* गन्ने के रस थोड़ी सी बर्फ और नींबू निचोड़ कर पीने से उल्टी रूक जाती है। 
* नींबू के रस में काली मिर्च और काले नमक का चूर्ण मिलाकर बूंद बूंद रस पिये। 
* एक ग्राम हरड़ का चूर्ण शहद के साथ चाटने से वमन रूक जाती है। 

नकसीर 
* रात में गुलाब जल में किशमिश पिस कर सेवन करे। 
* गन्ने के रस में 8 - 10 बूंद प्याज का रस मिलाकर नाक, कनपटियों तथा माथे पर धीरे धीरे लगाये। 
* माथे पर फिटकरी का लेप करने से नाक से खून गिरना रूक जाता है। 

गर्दन का दर्द 
* एक पोटली में अजवायन और जरा सी हींग बांधकर तवे पर गर्म करके गर्दन  का सेक करें। 
* जायफल पीसकर चंदन की तरह गर्दन पर लेप करें। 
* राई तथा सरसो का तेल मिलाकर गर्दन पर धीरे धीरे मालिश करें। 

जुकाम 
* लहसुन की दो कलियों को आग में भून कर पिस कर चूर्ण को शहद के साथ चाटे। 
* हींग को पानी में घोलकर विक्स की तरह बार बार सूंघने से जुकाम जल्दी ठीक हो जाता हैं। 
* एक चम्मच अदरक के रस में आधा चम्मच शहद मिलाकर चाटे। 
* एक कप गाय के दूध में एक चम्मच पिसी हुई हल्दी और चीनी मिलाकर पी जाये। 

खांसी 
* एक चम्मच अदरक के रस में थोड़ा सा शहद मिलाकर सुबह शाम चाटने से हर प्रकार की खांसी में आराम मिलता है। 
* आधा चम्मच लहसुन का रस शहद के साथ सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है। 
* देसी घी में सेंधा नमक मिलाकर छाती पर धीरे धीरे मलने से सारा बलगम निकल जायेगा। 
* खजूर खाने से सूखी खांसी दूर हो जाती है। 

Benefits of Banana For Dry Skin In Hindi

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त्वचा को यंग रखना है तो समय - समय पर फेशियल करवाना बहुत जरूरी है, लेकिन कई बार समय ना मिल पाने के कारण हम पार्लर नहीं जा पाते और हमारी त्वचा पर इसका असर दिखने लगता है।  ऐसे में घर में ही कुछ बातों को अपनाकर हम अपनी त्वचा का निखार बनाए रख सकते है।  अगर आप घर में ही फेशियल करना चाहती  है तो केला इसके लिए काफी बेहतर रहेगा।  केले के उपयोग से त्वचा स्वस्थ और ग्लोइंग बनती है।  केले में विटामिन सी , ए , पोटेशियम, कैल्शियम , फास्फोरस व कार्बोहाइड्रेट्स भरपूर मात्रा में  होते है।  ऐसे में   इसे खाना और स्किन पर लगाना दोनों ही फायदेमंद होता है। 

यू तो केले का फेशियल हर तरह की स्किन के लिए अच्छा रहता है , लेकिन खास तौर पर यह ड्राई स्किन के लिए अच्छा रहता है।  इसके साथ ही अगर त्वचा पर दाग - धब्बे है तो यह फेशियल आपके लिए अच्छा ऑप्शन है।  इसे माह में एक बार करना चाहिए।  इससे स्किन  ब्लड सर्कुलेशन ठीक होता है और त्वचा पर निखार आता है।  साथ ही स्किन सॉफ्ट व ग्लोइंग हो जाती है।  स्किन से दाग - धब्बे कम करने के लिए भी केला लगाना चाहिए।  
 केले को स्किन पर कई तरह से उपयोग किया जा सकता है इसके लिए आपको कुछ टिप्स देते है। 

* कच्चे दूध से चेहरे पर मसाज करें।  उसके बाद कॉटन से इसे साफ करें।  और बाद में मैश किया हुआ केला लगाएं।  
* स्किन के डेड सेल्स और ब्लैक हेड्स निकालने के लिए आधे केले को मैश कर लें।  उसमे थोड़ी चीनी मिलाएं , अच्छी तरह मिक्स करें।  अब इस पेस्ट से स्किन पर मसाज करें।  इसके बाद दो से तीन मिनट तक स्टीम लें।स्टीम लेने के बाद हल्के हाथ से चेहरे पर मसाज करें। 
* अगर चेहरे पर ग्लो नही है तो केले को मैश कर उसमे एक चम्मच शहद और गुलाब जल मिलाएं।  इस पेस्ट को चेहरे पर बीस मिनट के लिए लगाएं।  स्किन अच्छी हो जाएगी। 
* चेहरे पर झुर्रिया है तो केले को मैश कर उसमे शहद , जैतून का तेल मिलाएं।  इस पेस्ट को चेहरे पर बीस मिनट के लिए लगाये , झुर्रिया कम होगी।  

Neck Care Tips In Hindi | Neck Skin Care

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आप  अपने चेहरे की खूबसूरती का बहुत खयाल रखती है , लेकिन गर्दन की देखभाल भूल जाती हैं।  क्या आप जानती हैं कि गरदन की त्वचा सारे शरीर की तुलना में सबसे पहले ढीली होती है।  गर्दन पर सबसे पहले झुर्रिया पड़ती हैं।  इसलिए हमे गर्दन की सफाई पर भी पूरा ध्यान देना चाहिए।  आज में आपको कुछ छोटी - छोटी बातें बताती हूँ जिन्हे अपनाकर आप अपनी गर्दन की देखभाल कर सकती है। 

गर्दन की स्क्रबिंग भी चेहरे की स्क्रबिंग जितनी जरूरी है।  आपको हफ्ते में एक या दो बार गर्दन की त्वचा से डल और मृत त्वचा की परत हटानी होती है।  इससे गर्दन पर न केवल झुर्रिया कम होती है,बल्कि यहां की त्वचा मुलायम और एक्ने रहित हो जाती है।  मृत त्वचा की परत हटने से जो भी मॉइश्चराइजर या संस्क्रीन आप लगाती है , वह बेहतर अवशोषित होता है।  ध्यान रखे, स्क्रबिंग हफ्ते में एक या दो बार से ज्यादा न करें , वरना त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है और वह रूखी हो सकती है। 

गरदन की मांसपेशियों को रिलेक्स करने करने और खून का संचार बढ़ाने के लिए हफ्ते में दो से तीन बार किसी भी प्राकृतिक तेल से मालिश करें। 

गर्दन की साधारण स्ट्रेचिंग और कुछ योगासन गर्दन की मांसपेशियों की टोनिंग करते हैं।  गर्दन के लिए ' किस द स्काई ' व्यायाम बहुत ही अच्छा होता है।  इसे करने के लिए सीधे बैठें।  सिर को पीछे की तरफ ले जाएं ,आंख और होंठ बंद रखें।  अब गहरी सांस लें।  होठों को इस अंदाज में सिकोड़ें, जैसे आप आसमान को चुंबन दे रही हों , साथ ही गर्दन को भी स्ट्रेच करें।  इस अवस्था में 10 मिनट तक रहें।  इसके बाद ठोड़ी को धीरे - धीरे नीचे करें और सामने देखें।  श्रेष्ठ परिणाम के लिए एक बार में कम से कम पांच बार ऐसा करें। 

आप कम से कम 15 एसपीएफ का मॉइश्चराइजर हर रोज गर्दन पर लगाएं।  इसे आप गर्दन पर हल्के हाथ से रगड़ने के साथ - साथ सीने के ऊपरी हिस्से पर भी लगाएं।  सूरज की किरणें शरीर के उन हिस्सों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुचाती हैं , जहां त्वचा पतली होती है और शरीर के जिन हिस्सों पर त्वचा सबसे पतली होती है, गर्दन उनमें से एक है अगर आप अतिरिक्त सुरक्षा चाहती हैं तो उस क्रीम का इस्तेमाल करें, जो खासतौर पर गर्दन और सीने के लिए आती है। 
गर्दन की सफाई के लिए नींबू का रस 10 से 15 मिनट के लिए लगाएं।  इससे गर्दन चमक उठेगी। 
हमेशा पीठ के बल सोना चाहिए।  ऐसे सोने से चेहरे , गर्दन और सीने पर झुर्रियां कम पड़ती हैं।  

Benefits Of Sprouted Lentils | Perfect Diet Of Ankurit Daal

Benefits Of Sprouted Lentils | Perfect Diet Of Ankurit Daal| Nutritional Value Of Sprouted Lentils | Health Benefits Of Sprout Lentils | अंकुरित दालें है परफेक्ट डाइट 

अंकुरित दालों में केलोरी की मात्रा बहुत कम होती है।  अगर आप अपने वजन को लेकर चिंतित है और कैलोरीज घटाने का आसान तरीका ढूंढ रहे हैं तो अंकुरित दालें जीवन शैली को स्वस्थ रूप देंगी 

अंकुरित दालें फाइबर का एक प्राकृतिक स्रोत हैं।  फाइबर पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है और आपके नाश्ते और लंच के बीच के समय में आपको भरपेट रखता है।  इससे आप अस्वास्थ्यकर चीजें खाने से बचते हैं और अपने आहार को भी नियंत्रित कर सकते हैं। 

अंकुरित दालों में पर्याप्त मात्रा में वनस्पति प्रोटीन होता है जो एक स्वस्थ आहार को सपोर्ट करता है।  तो देर किस बात की लें एक परफेक्ट डाइट।  

अंकुरित दालें रक्त को शुद्ध करने में लाभकारी होती हैं और आपकी त्वचा से लेकर आपके बालों को निखारने में मदद करती है। 

अगर आप बाल झड़ने की समस्या से परेशान हैं तो आप अंकुरित दाल की एक कटोरी रोज सुबह नाश्ते में लें।  

अंकुरित दालें ऑक्सीजन का एक बहुत अच्छा स्त्रोत हैं।  ऑक्सीजन युक्त खाद्य पदार्थ शरीर में उपस्थित तरह तरह के वायरस और बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद करते हैं। 

अंकुरित दालों से शरीर को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट , विटामिन और खनिज प्राप्त होता है जो की स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक है।  

Arthritis Natural Treatments | Remedies Of Joint Pain| Joint Pain Desi Nuskhe

Arthritis Natural Treatments | Remedies Of Joint Pain| Jodo Ke Dard Ke Liye Gharelu Upchar In Hindi | Joint Pain Desi Ilaj | Gharelu Upay Of Joint Pain | Joint Pain Hindi Gharelu Nuskhe | जोड़ों के दर्द के लिए देसी उपचार , नुस्खे , देसी इलाज   

ईश्वर की अदभुत कृति है हमारा स्केलेटन  यानी हड्डियों का ढांचा।  कमल है इसके जॉइंट्स, जो इन्हे सौपे गए काम के अनुसार मूवमेंट करते है , वजन उठाते हैं और दबाव झेलते हैं।  इस जटिल ढांचे को बनाने वाले शिल्पी ने इसकी देखरेख के लिए भी हमें कई उपहार दिए हैं। 

जोड़ो व हड्डियों में दर्द व जलन आज आम शिकायत है।  इसे हड्डी रोग विशेषज्ञ आर्थराइटिस कहते है।  उनके अनुसार हड्डियों के बीच के कार्टिलेज के घिस जाने या जोड़ों के टिश्यू की प्रतिरोधक क्षमता घटने से हड्डी रोग होते हैं जो मूवमेंट्स को रोक देते हैं।  जोड़ों व हड्डियों में दर्द व जलन के कई सहज प्राकृतिक उपाय हैं ,

हल्दी में शक्तिशाली आक्सीडेंट करक्यूमिन है , जो जलन पैदा करने वाले एंजाइम्स का प्रतिरोधक है।  दो कप पानी में आधा चाय चम्मच हल्दी व इतना ही अदरक का रस 10 से 15 मिनट उबालें और दिन में दो बार पिएं। 

सेंधा नमक में मेग्नीशियम सल्फेट है , जो दर्द से राहत प्रदान करता है।  एक कप गर्म पानी में आधा कप सेंधा नमक मिलाएं और इसे तेल की तरह जोड़ों पर मलें।  सेंधा नमक के पानी से स्नान करने से भी दर्द से राहत मिलती है। 

हमारे शरीर के लिए मैग्नेशियम जरूरी है, पर शरीर इसे नहीं बनाता।  इसके कई बायोमेडिकल उपयोग है।  यह मसल्स - नर्वस को आराम देता है।  दर्द से मुक्ति दिलवाता है।  गहरी हरी पत्तियों वाली सब्जी जैसे पालक, नट्स और सेमफली का खूब सेवन करें। बाजार में मैग्नेशियम आयल भी मौजूद है।  इसे मलने से जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है। 

जोड़ों में दर्द हो तो चलना मुश्किल हो जाता है, पर मूवमेंट बंद कर देंगे तो वजन बढ़ेगा जो जॉइंट्स पर दबाव बढ़ाएगा।  मूवमेंट करेंगे तो मसल्स मजबूत रहेंगे व जोड़ों को ताकत मिलेगी।  चलने - फिरने से जॉइंट्स का कार्टिलेज पतला होता है और लुब्रिकेंट्स का काम करता है।  जोड़ों से जुड़ी एक्सरसाइज भी स्टीफनेस व दर्द घटाएगी। 

जोड़ों के लुब्रिकेंट का काम करता है - ओलिव आयल।  डेढ़ चम्मच ओलिव आयल में इबुप्रोफ़ेन 200 मिग्रा , जितनी पेन किलिंग क्षमता है।  इसे दिन में दो बार जोड़ों पर मलें।  जोड़ों में दर्द के वक्त नमक व खटाई का कम से कम इस्तेमाल किया जाए।  खानपान पर पूरा ध्यान दें।  व्यायाम को दिनचर्या का हिस्सा बना लें क्योंकि इससे आपके जोड़ प्रोपर तरीके से मूवमेंट करते रहेंगे।  ध्यान रहे कि ज्यादा दर्द होने पर व्यायाम रोक दें और चिकित्सक की सलाह पर ही आगे व्यायाम करें

How To Do The Master Cleanse Lemonade Diet | Benefits Of Lemon Diet

How To Do The Master Cleanse Lemonade Diet | Benefits Of Lemon Diet In Hindi | Master Cleanse And The Lemonade Diet| Lemonade Diet Useful For Your Body । फिट रहने के लिए लें लेमन डाइट 

हम सदियों से नींबू के गुणों से परिचित है और किसी न किसी रूप में वह हमारे भोजन का हिस्सा है। पश्मिची दुनिया में लोगों ने नींबू को और ज्यादा कारगर मानते हुए ' लेमन डाइट ' के रूप में अपनाया।  लेमन जूस डिटॉक्स यानी नींबू के जरिए शरीर का शुद्धिकरण आयुर्वेद में भी विस्तार है।  यह ऐसी डाइट थैरेपी बन चुकी है जो बेहद सस्ती , सुरक्षित और अपनाने में आसान है

क्या है लेमन जूस डाइट 
नींबू के रस से शरीर में जमा कचरे को बाहर निकालना इस डाइट का ध्येय है।  ये कचरा अस्वास्थकर आहार और दिनचर्या के कारण हर रोज थोड़ा - थोड़ा करके जमा होता जाता है।  लेमन जूस डाइट इसी कचरे को बाहर निकालकर शरीर में ताजगी भर देता है।  इससे वजन भी कम हो जाता है।  इसमें नींबू के रसायनों के जरिए पाचन तंत्र गंदगी को साफ करने और एक नया आहार संतुलन बनाने पर जोर दिया जाता है। 

लेमन जूस डाइट प्लान 
डायटीशियन और फूड एक्सपर्ट के अनुसार यह डाइट प्लान अपनाने में बेहद आसान है और दिनचर्या के हिसाब से अपनाया जा सकता है। इसमें नींबू की शक्ति को दिनभर के क्रिया - कलापों के साथ जोड़ दिया जाता है।  खास बात है कि इस डाइट प्लान को शुरू करने के साथ ही आपको पूरे दिन भरपूर पानी पीना होता है।  आप जितना पानी पिएंगे शरीर से विकार उतनी जल्दी दूर होगें।  ठंडे पानी की जगह गुनगुना पानी पिए तो नतीजे ज्यादा अच्छे मिलेंगे। 

दिन की शुरुआत और समापन नींबू  के साथ 
सुबह उठते ही नित्य कर्म से पहले एक गिलास गुनगुने पानी में एक नींबू का रस मिलाकर पीना होता है।  स्वाद और गुण बढ़ाने के लिए दो चम्मच शहद भी मिलाया जा सकता है लेकिन चीनी मिलाने से बचें तो अच्छा होगा इसी तरह दिन का समापन भी नींबू के साथ करें तो अच्छा होगा। 

अनसैचुरेटेड फैट्स से दोस्ती 
बहुत से लोग लेमन जूस डाइट के बाद अपने ही मन से चर्बी या फैट्स से बचने के लिए खाने में बदलाव ले आते है।  यहां समझने वाली बात है कि शरीर को फैट्स की भी उतनी जरूरत है जितनी बाकी पोषक तत्वों की।  यहां आपको ऐसे फैट्स से दोस्ती करनी होगी, जो अनसैचुरेटेड यानी असंतृप्त है और जिसका स्रोत जानवर नहीं पौधे है।  जैसे - सूरजमुखी का तेल , सभी तरह के गिरी वाले फल आदि।  सैचुरेटेड फैट्स शरीर में कोलेस्टेरॉल बढ़ाते है जबकि अनसैचुरेटेड उसे संतुलित करते हैं। 

फूड हैबिट्स पर रखें ध्यान 
लेमन जूस डाइट को अपनाने के दौरान आपको अपनी खाने की आदतों पर ध्यान देना सबसे जरूरी है।  जो भी खाएं अच्छे मूड से और धीरे धीरे चबाते हुए खाएं। बहुत से लोगों को इस डाइट के बाद ज्यादा भूख लगने लगती है और खाने के कुछ ही देर बाद और खाने को मन करता है।  ऐसे लोगों को '25 मिनट इंतजार ' का नियम याद रखना चाहिए।  खाना खाने के 25 मिनट बाद पेट मस्तिष्क को संदेश भेजता है कि वह संतृप्त हो गया है।  ऐसे में यदि एक बार खाने के बाद 25 मिनट इंतजार किया जाए तो अतिरिक्त खाने से बचा जा सकता है। 

फल - सब्जियों का सेवन ज्यादा 
इस डाइट के साथ खाने में फल और सब्जियों की मात्रा बढ़ानी होगी।  दिन भर में कम से कम कुल आहार के चार से पांच हिस्से फल - सब्जियों के रूप में लें।  नाश्ता , लंच, स्नैक्स और डिनर में भारी व तली हुई चीजों की जगह फल - सब्जियां और साबुत अनाज से बनी चीजें होंगी तो नींबू को अपनी सफाई में मदद मिलेगी। 

Awareness Of Food Allergy | Artical Of Food Allergy in hindi

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इंडियंस खाने के बड़े शौकीन होते है , हर बार कुछ अलग फूड को खाने की चाह रखते है।  लेकिन कई बार खाने का बदलाव और जायका सेहत पर भरी पड़ जाता है।  इसका मुख्य कारण फूड एलर्जी है।  लोग अपने खान - पान को लेकर अवेयर नहीं होते , जिससे बीमारियां बढ़ने की आशंका हो जाती है। 
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और मेडिकल फील्ड की संस्थाओं ने मिलकर फूड सेफ्टी को घोषित किया है।  इसके तहत वे लोगों को भोजन से जुड़ी समस्याओं के बारे में अवेयर करेंगे।  डॉक्टर्स का मानना है खान - पान से जुड़ी समस्याएं इस बार काफी आ रही है।  हॉस्पिटल्स में भी फ़ूड एलर्जी के पेशेंट्स ज्यादा आ रहे है।  दरअसल फूड प्रदूषण के कारण दो सौ से ज्यादा तरह की बीमारियां होती हैं।  ऐसे में लोगों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए सही खान - पान को लेकर हमेशा अवेयर रहना चाहिए। 

खाना बनाने और रखने का तरीका भी सही हो 
लोगों का मानना है कि गंदगी और प्रदूषित जगह पर रखा खाना अनहैल्थी और विषाक्त होता है।  साफ - सुथरे दंग से खाना बनाने या उसे सही तरह से रखने के बारे में डॉक्टर्स ने कई टिप्स दिए हैं। 

*  भोजन तैयार करते या उसे रखते समय एलर्जी फैलने का डर रहता है, इसलिए इस दौरान हाथ साफ होना सबसे जरूरी होता है। 
*  यदि आप हेपेटाइटिस ए की तरह किसी भी वायरल संक्रमण से ग्रस्त है, त्वचा पर किसी तरह का इन्फेक्शन या संक्रमण है या खुले घाव हैं, तो खाने को बिना हाथ धोए न छुए। 
*  सब्जियों , फल और मांस , मछली , अंडे को रखने और काटने के लिए अलग हमेशा प्लेट, चाकू और कटिंग  बोर्ड का इस्तेमाल करें। 
*  कच्चे खाद्य  पदार्थो और पकाए हुए भोजन को हमेशा अलग जगह रखें। 
* कटिंग बोर्ड को गर्म पानी से धोकर ही रखें। 
*  भोजन के जीवाणु मुक्त करने के लिए जरूरी है पूरी तरह से पकाना। 
*  हमेशा ताजा भोजन करें।  बासी भोजन को यूज नहीं लेना चाहिए। 
*  शाकाहारी और मांसाहारी  भोजन पदार्थो को अलग - अलग रखना चाहिए। 

खान - पान में अवेयरनेस अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।  जंक फूड के लगातार सेवन से मोटापा बढ़ता है , जिससे कई तरह की बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है।  खाने के तौर - तरीके , समय और फूड मेटेरियल भी सेहत को काफी हद तक नियंत्रित करते हैं।

Junk Food Is Unhealthy For Pregnant Women

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आमतौर पर जंकफूड की ओर पुरुषों की वजाय महिलाओं का झुकाव ज्यादा होता है।  एक नए शोध में बताया गया है कि टीनेजर में स्वास्थ्यवर्धक भोजन से पुरुषों में जंक फूड के प्रति लगाव कम किया जा सकता है , लेकिन महिलाओं में इसकी संभावना कम होती है।  एक मैगजीन के मुताबिक, जंक फूड के प्रति झुकाव की तीव्रता काफी हद तक, गर्भावस्था के अंतिम दिनों में माता के आहार पर निर्भर करती है।  युवा होने के दौरान जंक फूड से जुडी दो महत्वपूर्ण विंडो हैं। 

बच्चों के लिए नुकसान दायक 
ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड विश्वविद्यालय में डॉक्टर रहीं रिसचर जेसिका गुगुशेफ ने बताया, ' मनुष्यों में गर्भावस्था के अंतिम दिनों में मां का ज्यादा जंक फूड लेना, गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में उसके जंकफूड लेने की अपेक्षा बच्चे के लिए कहीं ज्यादा नुकसानदायक हो सकता है। ' गुगुशेफ ने कहा, शोध में यह भी बताया गया है कि यदि माता ने गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में जंकफूड खाया है, तो गर्भावस्था के अंतिम दिनों में उसे कम करके बच्चे पर पड़ने वाले इसके नकरात्मक प्रभावों को रोका जा सकता है। ' अध्ययन के अनुसार, दूसरी महत्वपूर्ण विंडो टीनेजर के दौरान जंक फूड के प्रति लगाव को दूर करने की है।  गुगुशेफ ने बताया, ' हमने पुरुषों और महिलाओं में अंतर पाया।  प्रयोगों ने दर्शाया कि पुरुष, किशोरावस्था के दौरान जंक फूड की प्रयोरिटीज को बदल सकते हैं, लेकिन महिलाएं ऐसा नहीं कर पातीं। '

Yoga , Exercise For Zero Size Figure (जीरो साइज योगा )

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शरीर में अवांछित चर्बी का बढ़ना और अनिद्रा, दो ऐसी समस्या है , जिससे अधिकांश महिलाएं पीड़ित होती हैं।  महिलाएं खुद को छरहरा बनाने के लिए अनगनित साधन अपनाती हैं।  योग की दुनिया में इन समस्याओ का हल मौजूद है , जो प्रभावी भी है और अभ्यास में आसान भी। 

मकरासन 

बालू में विश्राम करते समय मगरमच्छ इस आसन स्थिति में होता है इसलिए इसे मकरासन नाम दिया गया है।  किसी खुले स्थान पर चटाई बिछाकर पेट के बल लेट जाएं।  अब दोनों हाथ की कलाइयों पर ठुड्डी रखें।  पैर के दोनों पंजों के बीच करीब दो फीट का अंतर बनाएं।  शरीर को बिल्कुल शिथिल छोड़ दीजिए और आराम की मुद्रा में लेटे हुए श्वास को सामान्य रूप से चलने दें। 

लाभ 
मकरासन के अभ्यास से नींद कम आना या एकदम न आने की समस्या से मुक्ति मिल जाती है।  दमा , अस्थमा में भी लाभ पहुंचता है।  इसके अभ्यास से आंते मजबूत होती हैं और शरीर के विभिन्न अंगो को विश्राम मिलता है। 

चक्रासन 

चटाई बिछाकर पीठ के बल लेट जाएं।  पैर मोड़कर शरीर के पास ऐसे लाएं कि एड़ियां नितम्ब को छूती रहें।  दोनों एड़ियों के बीच तकरीबन एक फिट की दूरी रखें।  हथेलियों को जमीन पर कान के बगल में, इस प्रकार घूमाकर रखें कि उंगलियाँ कंधे की ओर रहें।  अब धीरे - धीरे शरीर को हाथों और पैरों के बल ऊपर की ओर उठाएं।  हाथ और पैरों को सीधा करते हुए सिर और शरीर को पूरी गोलाई में ऊपर की ओर उठाएं।  कुछ सेकंड रुकें और फिर धीरे - धीरे सामान्य मुद्रा में आ जाएं। 

लाभ 
मेरुदंड मजबूत होता है। 
कमर लचीली होती है और चर्बी भी कम होती है। 
उदर संस्थान के सभी अंगो के लिए यह आसन लाभदायक है। 

सावधानियां 
उच्च रक्तचाप, हृदयरोग , पेट के घाव , अस्थिदोष एवं नेत्रदोष की शिकायत हो , तो यह आसन न करें। 

Food Poisoning , Gastroenteritis( आंत्रशोथ ) Symptoms, Causes Treatment

Food Poisoning , Gastroenteritis( आंत्रशोथ ) Symptoms, Causes Treatment | Symptons Of Food Poisoning | Symptoms & Treatment Of Gastroenteritis | Food Poisoning Causes | 

गर्मी के दिनों में फूड पॉयजनिंग जैसी समस्या होना आम बात है।  लेकिन  आंत्रशोथ  भी अब काफी आम हो गया है।  रोग के कारणों की जानकारी न होने से रोग और भी गंभीर रूप धारण कर लेता है।  बड़ो के साथ साथ बच्चे भी इस रोग से प्रभावित होते हैं।  ज्यादातर महिलाएं रखा हुआ भोजन या फ्रीज किया हुआ भोजन करती है , जो आंत्रशोथ  का बहुत बड़ा कारण है।  बेहतर होगा यदि आप गर्मी के मौसम में ताज़ा भोजन ही लें। 

अमाशय या आंतो की सूजन को आंत्रशोथ ( गैस्ट्रोएंट्राइटिस ) के नाम से जाना जाता है।  यह एक तरह का तीव्र संक्रमण है, जो कई तरह के वायरस,बैक्टीरिया अथवा फूड पॉयजनिंग ( विषाक्त भोजन ) के कारण पैदा होता है।  उल्टी, दस्त,जी मिचलाना, पेट में मरोड़ महसूस होना इस रोग के लक्षण हैं।  इसे ठीक होने में 3 - 5 दिन लग जाते हैं।  डॉक्टरों के अनुसार,  संक्रमित , बासी और भारी भोजन का सेवन ही इस समस्या का मुख्य कारण है।  इस रोग की उत्पति का मुख्य कारण खास बैक्टीरिया हैं , जिनका संक्रमण महज 2 - 8 घंटो में फैलता है। 

आंत्रशोथ यूं तो एक सामान्य इंफेक्शन है लेकिन समय रहते उपचार न किया जाए , तो यह रोग गंभीर रूप धारण का सकता है इसलिए सावधानियां बरतें।  जैसे -
*  रखा हुआ या बासी भोजन न करें। 
*  अंडा , मछली, मांस के सेवन से बचें। दूध भी अच्छी तरह पकाएं।  अधपका भोजन भी न करें। 
*  साफ - सफाई का विशेष ध्यान रखें।  साफ हाथों से ही खाना बनाएं व परोसें।  बर्तन भी साफ सुथरे रखें। 
*  चावल व बीन्स आदि को दो घंटे से ज्यादा गर्म तापमान में न रहने दें।  ये विषाक्त हो सकते है। 

सामान्य लक्षणों की उपस्थिति में डॉक्टरी परामर्श की आवश्यकता नहीं होती , लेकिन पेट दर्द , मल त्याग के समय खून आना जैसे लक्षणों के पैदा होने पर तत्काल डॉक्टर से संपर्क करें।  देखने में कठिनाई होना, दो छवियां दिखना जैसे लक्षणों को कतई नजरअंदाज न करें। यह रोग भी गंभीरता प्रदर्शित करते हैं।  तरल पदार्थ और हल्का भोजन लेने की सलाह रोगी को दी जाती है। 

घरेलू उपचार 
उल्टी व दस्त होने की दशा में सिर्फ तरल पदार्थ का ही सेवन करें।  नमक, शक़्कर और पानी का घोल इस रोग में लाभकारी होते हैं।  खट्टे फलों के रस, पतला मटठे व ताजे दही का सेवन करें।  घरेलू उपचार में एक चम्मच सौंफ को 2 गिलास पानी में उबालें।  जब एक गिलास पानी शेष बचे, तो रोगी को यह पानी थोड़ी - थोड़ी मात्रा में पिलाते रहें।  इससे दस्त में आराम मिलेगा।  सेंकी हुई अजवायन, ज़ीरा व काले नमक का चूर्ण बनाकर दिन में 3 बार लें , आराम मिलेगा।  ठंडे पानी की पट्टी पेट पर रखना भी पेट की गर्मी को शांत करता है।  

Summer Camp , No TimePass (टाइमपास नहीं होते समरकैंप )

 Summer Camp , No TimePass  (टाइमपास नहीं होते समरकैंप )। No Timepass Summer Camp| Camp, For Summer Timepass

यह सच है कि आज अभिभावक बच्चों के सर्वांगीण विकास को लेकर काफी जागरुक हैं वे बच्चों की शिक्षा व स्वास्थ्य के साथ -साथ शिक्षेतर गतिविधियों में उनकी भागीदारी व श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए भी प्रयासरत हैं।  इसके बावजूद प्रतिभा को निखारने के लिए अभ्यास तथा आगे मार्गदर्शन न दिलवाने के कारण,वे अपने बच्चों की प्रतिभा के अनुरूप मुकाम तक पहुंचाने में अक्सर असफल ही दिखते हैं। 

यकीनन इसका कारण शैक्षणिक क्षेत्र में दिनोंदिन बढ़ती प्रतियोगिया ही है।  शैक्षणिक सत्र के आरंभ होते ही नर्सरी से लेकर बड़ी कक्षाओ में पढ़ने वाले बच्चों पर भी 'स्कूल कैलेंडर ' के हिसाब से अपनी दिनचर्या तय करने का दबाव रहता है। वार्षिक परीक्षाओं तक हर परीक्षा में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर अच्छे अंक पाना ही उनके स्कूली जीवन का लक्ष्य बन जाता है। ऐसी स्थिति में बच्चों की रुचि शौक या हुनर से जुड़ा कोई भी प्रशिक्षण भले ही वह संगीत नृत्य,खेल,चित्रकारी आदि कुछ भी हो, के लिए समय देना अभिभावकों को रास नहीं आता क्योंकि वे समझते हैं कि बच्चा यदि इस सबके लिए समय और ध्यान देगा ,तो पढ़ाई में पिछड़ जायेगा। 

इन्हीं धारणाओं पर आधारित सोच के कारण आजकल बच्चों को केवल गर्मी की लंबी छुट्टियों में उनकी कला,रुचि या प्रतिभा के अनुरूप प्रशिक्षण दिया जाता है।  व्यवसायिकता के इस युग में गली - मोहल्ले से लेकर शिक्षण संस्थानों व बड़े शॉपिंग मॉल कर में संगीत से लेकर फाइन आर्ट एवं अभिनय से लेकर जुडो -कराटे तक की अनेक विधाओं का प्रशिक्षण अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ समर -कैंप के माध्यम से देते हैं। 

आज हर दूसरा बच्चा किसी न किसी तरह का प्रशिक्षण लेता भी है,मगर अफसोस !अधिकांश अभिभावक उन्हें गर्मी के लम्बी दिनों में व्यस्त रखने या धूप में जाने से रोकने के लिए ही ऐसे किसी कैंप या क्लास में भेजते हैं।अधिकांश घरों में प्रशिक्षण के दौरान बच्चों द्वारा बनाई पेंटिंग या गुड़िया दीवान - खाने में सजाकर मेहमानों से प्प्रशंसा प्राप्त का बच्चे की पीठ तो थपथपवा ली जाती है , स्कूल खुलते ही पेंटिंग का सामान,गुड़िया,क्रिकेट का बैट या गिटार, बच्चों की पहुंच से दूर ' परछती ' पर चढ़ा दिया जाता है। 

देखा जाये तो ऐसा करके अभिभावक अपना नुकसान ही करते है प्रशिक्षण के लिए दिया गया समय एवं फीस के साथ साथ लगन से हासिल बच्चों का 'हुनर ' प्रायः अभ्यास के अभाव में लुप्त हो जाता है। 
यदि हम बच्चों की रुचि के अनुसार उन्हें प्रशिक्षण के लिए भेजते हैं, तो यह आवश्यक है कि छुट्टियों में सीखी कला या खेल के अभ्यास का उन्हें अवसर दिया जाए।  गंभीरता से किसी भी विधा, को सीखना यदि बच्चों का काम है , तो उनकी रुचि एवं संलग्नता बनाए रखने की जिम्मेदारी पालकों की ही है। 

देखा जाए तो इसके लिए पालकों को कोई खास प्रयास भी नहीं करना पड़ता।  इतना ही करना होगा कि यदि बिटिया ने समरकेम्प में मेहंदी का ' कोन ' लाकर दिया जाए या बेटे ने क्रिकेट के ' गुर ' सीखे हैं ,तो हफ्ते में दो बार उसे घंटे भर के लिए ही सही,बैट - बॉल के साथ ग्राउंड में खेलने की छूट मिले। 

कई बच्चों को किसी शौक का जुनून इस हद तक होता है कि वे इसके लिए अपना खेलने या टीवी देखने का समय उपयोग में लाते है. ऐसी स्थिति में हमारा थोड़ा - सा प्यार , सहयोग और प्रोत्साहन उन्हें संबंधित क्षेत्र में सफल बना सकता है। 

सर्वोतम तो यही होगा कि अभिभावक छुट्टियो में लगने वाले ' समरकैम्प ' में बच्चों को व्यस्त रखने का माध्यम मात्र न समझकर , किसी भी कला या हुनर को प्राप्त करने का सुअवसर समझें।  बच्चे यदि इस प्रशिक्षण को गंभीरता से नहीं लेते,तो उन्हें भी इस तथ्य से अवगत कराएं। 

स्कूल खुलने के बाद भी अभिभावक यदि पढ़ाई  और सीखे गए हुनर के बीच सामंजस्य बनाकर उन्हें प्रोत्साहन व सहयोग दें अभ्यास का अवसर व छूट दें, तो यह छोटा सा प्रयास बच्चों को भले ही कोई बड़ा कलाकार या खिलाड़ी न बना सके , एक शौक के रूप में विकसित होकर उम्रभर के लिए खुशी या आनंद, संतुष्टि और सुख प्राप्त करने की राह ज़रूर दिखा देगा। 

बच्चे सादे कागज पर लकीरें भी खीचें,तो उन्हें नजरअंदाज न करें।  हो सकता है यह लकीरें ही भविष्य में उन्हें सफलता की बुलंदियों तक पहुंचने का रास्ता सुझाएं। अभिभावक होने के नाते उन्हें आपका प्रोत्साहन और मार्गदर्शन चाहिए और चाहिए थोड़ा सा प्यार, जो उन्हें बेहतर करके दिखाने की प्रेरणा और ऊर्जा दोनों देगा।  उनकी सोच को आकार देकर जरूर देखिए 

बच्चो ने समरकैम्प में जो कुछ सीखा, यदि उसे आपकी तरफ से दोहराने का अवसर या छूट मिल जाए, तो हो सकता है कि बच्चा शौक को अपना हुनर बना ले।  समरकैम्प में गुजरे वक्त को टाइमपास न माने बल्कि देंखे कि बच्चे आगे कहां तक बड़ सकता है.....

Symptoms and Cure Of Dyspnea ( Saans Foolna)

Symptoms and Cure Of Dyspnea ( Saans Foolna)| Shortness Of Breath Or Breathlessness( Breathing discomfort )


डिसनिया हांफते  फेफड़े 
यूं तो ज्यादा मेहनत का काम कर लेने , ज्यादा शारीरिक श्रम करने, चढ़ाई चढ़ने , वजन उठाने या दूसरे कामों के दौरान अक्सर आपको सांस फूलने की शिकायत होती होगी।  विशेषज्ञों के मुताबिक , यह किसी बड़ी बीमारी का लक्षण हो सकता है। मेडिकल साइंस में सांस फूलने के लक्षण को डिसिनया कहा जाता है। 

हो सकता है कि आपने आज तक सांस फूलने (डिसिनया ) के लक्षण पर ध्यान नहीं दिया हो। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रत्येक 24 घंटे में अनगनित बार ऐसी स्थितियां बनती हैं,जिसमे व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी महसूस होती है और घबराहट का अहसास होता है। डॉक्टरों के मुताबिक ,यह स्थिति कई कारणों से बनती हैं जैसे किसी तरह का अतिरिक्त श्रम कर लेने, या फिर ऐसा कोई काम करने या ऐसी स्थितियों से दो।-चार होने पर जिसके हम आमतौर पर आदी नहीं हैं आदि। ऐसी स्थिति में श्वसन प्रक्रिया में बदलाव आ जाता है और सांस लेने में बहुत परेशानी महसूस होने लगती है।  साथ ही शरीर में एकत्र ऊर्जा का स्तर भी एकदम से गिरने लगता है जिसके कारण जी मिचलाना,घबराहट होना,छाती में दर्द होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। इन लक्षणों, खासकर सांस फूलने को कभी भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए ,क्योंकि हमेशा यह लक्षण सामान्य नहीं होता। यह किसी बड़ी बीमारी का संकेत भी हो सकता है। 

ऑक्सीजन की कमी के कारण ही शरीर की विभिन्न कोशिकाएं या तो काम करना बंद कर देती हैं या फिर सिकुड़ने लगती है। सांस फूलने को हृदयाघात का प्रारंभिक लक्षण भी माना गया है। 

फेफड़ो का कमजोर होना या फेफड़ो की किसी बीमारी से पीड़ित होने पर, आपका अनियंत्रित होता शारीरिक आकार , समुद्री तल से 10000 फीट की ऊंचाई पर पहुंचने पर ,अति उत्तेजना और डर के अलावा मानसिक रोगियों को अक्सर यह परेशानी होती है। यदि आप डायबिटिक एसिडोसिस की मरीज़ हैं या आपके ह्रदय के वॉल्व किसी बीमारी से ग्रसित हैं अथवा खून की कमी , हीमोग्लोबीन की कमी होना भी इन कारणों में शामिल है। इसके अलावा क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पलमोनरी डिसीज़ , एमफायसीमा , ब्रांकाइटिस आदि से पीड़ित होने एवं एनीमिया , ल्यूकेमिया, कार्बनमोनोऑक्साइड का ज़हर फैलना , फेफड़ों का इंफेक्शन , रक्त के थक्के बनना आदि कारणों से भी डिसिनया की शिकायत हो सकती है। 

डॉक्टरी सलाह एवं जांच 
सांस फूलने की शिकायत आपको बार बार हो रही हो,तो ह्रदय रोग विशेषज्ञ या श्वास रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें। फेफड़े और खून की जांच,ईसीजी और एक्स-रे की मदद से वे आपको उचित परामर्श देंगे। 

नियमित व्यायाम और टहलने की आदत व सुबह के समय कुछ देर बालकनी या छत पर खड़ी होकर लंबी -लंबी और खुलकर सांस लें। संतुलित वजन रखें।  योग करें।  डॉक्टर सलाह दें ,तो ट्रेंकुलाइजर या इन्हेलर का प्रयोग करें। 

Common Ailments Of Children

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Children Ailments | 

नन्हे मरीज़ के रोग बड़े 
छोटे बच्चों को रोग जल्दी पकड़ते हैं और इनके लक्षण आप भांप नहीं पातीं। हम यहां तीन ऐसे रोगों की चर्चा कर रहें हैं , जिनसे आमतौर पर अभिभावकों को जूझना पड़ता है।

बुखार में झटके आना
छह माह से लेकर पांच वर्ष के बच्चों में बुखार के दौरान झटके आना प्रायः देखा जाता है। कुछ बच्चों में झटके तेज बुखार में (102 डिग्री फॉरेनहाइट के ऊपर ) आते है परंतु कुछ में बुखार 100 डिग्री होने के पहले ही झटके आ सकते हैं।  पांच वर्ष की उम्र के बाद अधिकतर बच्चों में बुखार के साथ झटके आना खुद -ब -खुद बंद हो जाता है

क्या करें
घर में पैरासिटामोल / इब्रूफेन सिरप हमेशा रखें। पैरासिटामोल की खुराक बच्चे के वजन के हिसाब से दी जाती है। यह माप बच्चे के प्रतिकिलो वज़न पर 15 मिलीग्राम होती है। अतः खुराक देते समय बच्चे का वजन  जरूरध्यान में रखें।
* पैरासिटामॉल का असर 1 से 2 घंटे में होता है , इसलिए बग़ैर इंतजार किए बच्चे के शरीर पर तुरंत ठंडे पानी की पट्टी करना शुरू कर दें। इससे बुखार ज करें ल्दी कम हो जाएगा।

* हमेशा थर्मामीटर का करें। शरीर छूकर बुखार का पता लगाने का प्रयास न करें , विशेषकर अगर आपके बच्चे को बुखार में झटके आते हों , तो।

*झटके की प्रवृति वाले बच्चों के माता पिता को घर में डायजीपाम स्पोजिटरी ( दवा युक्त वैक्स की बत्ती ) रखनी चाहिए।  झटके आने पर इसे मल -द्वार से तुरंत अंदर दाल देने से झटके जल्दी रुक जाते हैं।

*झटकों के वक्त बच्चों को मुंह से कुछ भी नहीं देना चाहिए -न पानी , न दवा। कारण का पता लगाकर उचित इलाज कराएं , अन्यथा बच्चे को बार - बार बुखार और झटके आएंगे।  याद रखी , हर बार झटके के दौरान दिमाग की कुछ कोशिकाएं  नष्ट हो जाती हैं।


नाक से खून बहना ( नकसीर फूटना )
बच्चे की नाक से खून बहता देख आमतौर पर माता पिता घबरा जाते हैं जबकि असलियत यह है कि सही स्थान पर नाक को पर्याप्त समय तक दबाए रखने से 90 प्रतिशत नकसीर फूटने को बंद किया जा सकता है।  नाक से रक्तस्राव के प्रमुख कारण है : गर्म - खुश्क मौसम , नाक पर चोट लगना , बच्चे द्वारा नाक में उंगली डालना , नाक में इन्फेक्शन होना , नाक में कुछ वस्तु डाल लेना आदि।

क्या करें
बच्चे को आगे की तरफ थोड़ा झुकते हुए बैठने को कहें। उन्हें को लिटा देने से खून गले के रास्ते पेट में जाता रहता है और हम समझते हैं कि रक्त बहना रुक गया है। कुछ देर बाद जब काली खून भरी उल्टी होती है , तब घर में हाहाकार मच जाता है। अधिकांश रक्त नाक के शुरूआती भाग में स्थित बारीक रक्त नलिकाओं के फटने से आता है।  अतः नाक के अगले हिस्से को दबाने पर यह रुक जाता है।  इस दौरान बच्चे को मुंह से सांस लेने को कहना चाहिए।  रक्त के क्लॉट ( थक्का जमना ) होने का सामान्य समय है 5 से 7 मिनट , इसलिए नाक को लगभग 10 मिनट तक दबाए रखने से रक्तस्राव रुक जाता है । अगर नाक पर से प्रेशर जल्दी हटा लिया जाएगा , तो पुनः रक्त बहना शुरू हो जाएगा।  अगर रक्तस्राव नहीं रुकता है ,तो रुई की बत्ती बनाएं, उसे वैसलीन लगाकर चिकना करें और नाक में डालें तथा ऊपर से नाक को पुनः 10 मिनट के लिए दबाएं।  अगर आप के घर में नेसिवियान नेज़ल ड्राप उपलब्ध है , तो आप रुई की बत्ती पर वैसलीन की जग़ह इनका प्रयोग कर सकते हैं।  रक्त रुकने पर बत्ती को रात भर के लिए नाक में पड़ा रहने दें और अगली सुबह संभाल कर धीरे -धीरे बाहर निकाले।  इसके बाद भी रक्तस्राव नहीं रुकता है , तो बच्चे को तुरंत चिकित्सक के पास ले जाएं। जिन बच्चों की नकसीर बार - बार फूटती है , उनकी नाक में गर्म मौसम के दौरान वैसलीन लगाना चाहिए।  बच्चे के नाखून छोटे रखें और उसे नाक में उंगली डालने से रोके

डिहाड़ड्रेशन 
बच्चों के डिहाड़ड्रेशन (शरीर में पानी की कमी ) का प्रमुख कारण डायरिया होता है।  छोटे बच्चों में रोटावायरस डायरिया , डिहाड़ड्रेशन का प्रमुख कारण है। अगर बच्चा साथ में उल्टियां भी कर रहा है , तो शरीर में पानी की कमी होने का खतरा और भी बढ़ जाता है। 

डिहाड़ड्रेशन के खतरे के लक्षण 
बच्चा सुस्त पड़ जाता है। आंखे धसी दिखती हैं। त्वचा का लचीलापन खत्म हो जाता हैं।  पेट के ऊपर की त्वचा को अंगूठे और तर्जनी से पकड़ ,ऊपर उठाकर छोड़ने पर त्वचा या तो टेंट की तरह उठी रह जाती है या बहुत धीरे -धीरे से वापस जाती है।  जीभ खुश्क और सूखी रहती है। बुखार रहता है।  सांस तेज चलती है। पेशाब कम और गाढ़ा पीला होने होने लगता है। 

क्या करें 
बच्चे को ओआरएस का घोल दें। इसके दो प्रकार के पैकेट आते है : 200 मिली यानि 1 गिलास पानी में घोलने वाला और 1000 मिली या एक लीटर पानी में घोलने वाला।  आप घर में भी ओआरएस बना सकती हैं। एक लीटर साफ पानी में एक चम्मच नमक और आठ चम्मच शककर मिलाएं।  इसे 12 घंटे के अंदर ही इस्तेमाल करें। घर वाले ओआरएस में पोटेशियम नहीं होता।  इससे ताजा नींबू का रस मिलाने से इस समस्या का हल कुछ हद तक हो जाता हैं।  बच्चे को दूध एवं भोजन देते रहें।  खतरे के लक्षण दिखने पर उसे तुरंत चिकित्सक को दिखाएं।  हो सकता है कि बच्चों को भर्ती कर ड्रिप लगाना पड़े।

Tooth Brushing Best Techniques In Hindi

Tooth Brushing Best Techniques In Hindi  | Proper Techniques For Brushing Your Teeth What Is Best Technique For Brushing

ब्रशिंग , दांतो की देख -रेख की सबसे साधारण लेकिन अहम क्रिया होती है।  अधिकतर लोगों का मानना है कि अच्छा पेस्ट बस कर लेने से ही दांत साफ हो जाते हैं।  जबकि , दांतो की सफाई पेस्ट नहीं , ब्रश करता है।  पेस्ट सिर्फ दांतो पर रगड़ने और मलने के लिए बनाए गए हैं।  यह मुंह की दुर्गंध दूर कर ताज़गी का अहसास कराते हैं। पेस्ट करने से दांतो में चमक आती है और सड़न नहीं होती , ऐसा भी नहीं है। आवश्यक यह है कि आप ब्रश को किस तरह इस्तेमाल करते हैं। बात सिर्फ इतनी -सी है कि दांतो में भोजन जितना कम रहेगा,उसमे कीटाणुओ का संक्रमण उतना ही कम होगा और यह तभी हो सकता है जब दांतो की सफाई सही तरीके से की जाए। इसके लिए ब्रश और ब्रशिंग दोनों के बुनियादी तरीके पता होना बहुत आवश्यक हैं। 

1.. टूथब्रश ऐसा हो,जो आसानी से हाथों में आ जाएं और पकड़ भी अच्छी हो।  ब्रश हमेशा छोटे हेड वाला लें।  बहुत ज्यादा बड़े और चौड़े ब्रश को मुंह में चला पाना मुश्किल होता है। 

2..थब्रश हमेशा किसी विश्वसनीय कंपनी के ही लें।  इनका टैग जांच लें। इन पर ब्रश के ब्रिसिल्स की जानकारी दी गई होती है , जैसे -सॉफ्ट ,सुपरसॉफ्ट आदि। अपने मसूढ़ों को देखते हुए ब्रश का चुनाव करें। 

3.. ब्रिसिल्स यदि कड़े हों तो ब्रश करने से पहले कुछ समय के लिए टूथब्रश को पानी में डाल दें। पानी में डालने के बावजूद भी यदि ब्रिसिल्स कड़े हों , तो फोम वाले टूथपेस्ट का उपयोग करें। 

4.. हमेशा कैप लगे ब्रश का उपयोग करें।  इससे कीटाणुओ और जीवाणुओं का संक्रमण नहीं होता। 

5..  यह आपके ब्रश करने के उपयोग पर निर्भर करता है कि आपका ब्रश कितने समय चलेगा।  जब इसके ब्रिसिल्स टेढ़े हो जाएं तो इसे बदलें। 

6.. दांतों पर ताकरत से ब्रश न चलाएं इससे मसूढ़े ढीले पड़ जाते हैं। इन्हें हल्के हाथों से ऊपर नीचे गोल घुमाते हुए करें और नीचे वाले दांतो की सफाई करते समय ब्रश को नीचे से ऊपर की तरफ घुमाएं। जिससे दांतो के बीच के हिस्से की सफाई हो सके। 

7.. रात को सोते समय ब्रश करके सोएं।  सप्ताह में कम से कम दो बार डेंटल क्लॉस करें  

Best Diet For Burns Patient, Typhoid Patient, Jaundice ( Piliya) Patient

Best Diet For Burns Patient, Typhoid Patient, Jaundice ( Piliya) Patient In Hindi |Piliya Patient Best Diet | Hindi Me Typhoid patient ke liye sahi aahar 

रोगी के लिए जितनी दवाएं जरूरी हैं , उतना ही उसका खान -पान।  जब भी डॉक्टर किसी मरीज के लिए दवाएं बता चुके होते हैं , घर के लोगों का पहला सवाल होता है - इन्हें खाने में क्या देना है ? यकीन कीजिए , इस सवाल का जवाब , दवाओं के बराबर ही अहम है। आमतौर पर जिन बीमारियों के दौरान खान -पान में लापरवाही या यूं कहें कुछ कमी रह जाती है मैं आपको उन खास स्थितियों के बारे में जानकारी दूगी।

बर्न्स के मरीज
कैसा महसूस करता है मरीज
सबसे पहले यह जान लें कि शरीर का कोई भी हिस्सा जला हो , जलन का अहसास तीव्र ही होता है।  दूसरी बात , जलन को दर्द निवारक दवाएं कुछ हद तक ही कम कर पाती हैं। इसलिए मरीज़ को लगातार बेचैनी और चिड़चिड़ाहट होती रहती है। ऐसे में खाने -पीने का बहुत मन करे , इसकी संभावनाएं कम ही हैं।

बर्न्स के मरीज की जरूरतें
ऐसे मरीजों में संक्रमण की आंशका बहुत अधिक रहती है , इसलिए बर्नस कितने भी हों , मरीज को अस्पताल में रहना ही पड़ता है। बस  , यह देखना होगा कि मरीज़ को ट्यूब से खाना देना है या मुंह से।  जलने के शिकार हुए मरीज़ों के शरीर में पानी की काफी कमी हो जाती है।  और इसमें ऊर्जा और प्रोटीन की आवश्यकता स्वस्थ इंसान से दोगुनी हो जाती हैं। अगर जले हुए हिस्से की जल्दी हीलिंग करनी है , तो दवाओं और साफ -सफाई से देखभाल के साथ साथ भरपूर ऊर्जा व प्रोटीन देना ज़रूरी है।  प्रोटीन का सही उपयोग तभी होता है , जब साथ में कार्बोज ( अनाज ) व फैट ( तेल या घी ) से भी ऊर्जा मिले।

क्या खाने को दिया जाए
यदि मरीज़ मुंह से खा पा रहा हो , तो श्रीखंड , खीर ( एक्स्ट्रा  घी या तेल के साथ दूध पाउडर वाली ) आदि दिए जा सकते हैं यदि मरीज़ को ट्यूब से खाना दिया जा रहा हो , तो मिक्सी में 200 मिली दूध व एक पकी हुई चपाती डालें।  इसमें दो चम्मच शक्कर डालें और पीस लें। पतला हो जाने पर इसमें दो छोटे चम्मच घी डालें और मरीज़ की ट्यूब में डालें। इससे लगभग 10 ग्राम प्रोटीन और 360 कैलोरी मरीज़ को मिलेंगी। नमकीन के लिए चपाती के साथ पकी हुई दाल भी पीसकर , छानकर व दो छोटे चम्मच तेल मिलाकर मरीज़ को दी जा सकती है।

सावधानी
जिस प्रकार का भी मिश्रण आप मरीज़ को दे रहे हों ,उसके बारे में डॉक्टर को जरूर बता दें और जब ट्यूब से खाना खिलाएं, तो अस्पताल के किसी जिम्मेदार व्यक्ति की मौजूदगी में खिलाएं।

आम भूलें
दाल का पानी , चिकन या मिट का सूप देने से प्रोटीन मरीज़ को नहीं मिलता।  प्रोटीन पानी में नहीं घुलता , इसलिए जब तक इन वस्तुओ को पानी में पीसा नही जाएगा , मरीज़ को केवल नमकीन पानी ही मिलेगा।


पीलिया के मरीज़
कैसा महसूस करता है मरीज़
पहले यह समझें कि पीलिया लिवर के प्रभावित होने की स्थिति होती है , लिहाज़ा रोगी को भूख बिल्कुल नहीं लगती। त्वचा पर पीलापन रहता है।  कमजोरी और मितली आना अन्य स्थितियां हैं। पेट में जलन भी हो सकती है।

मरीज़ की जरूरतें
लिवर के रोगग्रस्त होने के कारण मरीज़ के लिए कार्बोज , खनिज और पानी की आवश्यकता काफी होती है।  यह स्थिति काफी संभालकर चलने वाली होती है। अगर बिलीरुबिन की मात्रा , जांचो में ज्यादा आती है , तो डॉक्टर प्रोटीन की मात्रा को भोजन में कम करके देने के लिए कह सकते हैं , इसका ख्याल रखें।

क्या खाने को दें
केले का शेक, मीठा नींबू पानी, डबल रोटी - जैम , फल और कस्टर्ड , नॉनस्टिक में बनी आलू की टिक्की ( कम तेल वाली ) उबले आलू व केले की चाट मरीज़ को खाने को दी जा सकती है।

सावधानियां
ख्याल रहे कि पीलिया के मरीज़ को तेल कम ही देना होता है।  तेल की चयापचयी प्रक्रिया लिवर द्वारा संपन्न होती है और लिवर अभी यह करने में सक्षम नहीं होता।  केवल ग्लूकोज़ और फलों के जूस देने से मरीज़ को कोई लाभ नहीं होता।

टायफाइड के मरीज़
कैसा महसूस करता है मरीज 
लम्बी अवधि के बुखार को टायफाइड कहते हैं।  इस स्थिति में मरीज़ बेहद कमजोर हो चुका होता है। लम्बे समय से दवाइयां खाते रहने के कारण भोजन से उसकी पूर्ण अरुचि हो चुकी होती है। आंतो में फोड़े , बुखार और पेट में जलन टाइफाइड में मरीज़ की सामान्य स्थिति होती है। 

मरीज़ की जरूरतें 
टाइफाइड के मरीज़ो के बारे में आपने सुना होगा कि इनके बाल झड़ जाते हैं। ऐसा प्रोटीन की कमी के कारण होता है। रोगी को इस स्थिति में प्रोटीन काफी मात्रा में चाहिए होता है। पेट में जलन के कारण ठंडी वस्तुओं की भी जरूरत होती है। 

क्या खाने को दें 
थोड़ी -थोड़ी देर में यानी करीब तीन -तीन घंटे पर मरीज़ को कुछ न कुछ खाने को दें। गाढ़ी खिचड़ी , जिसमें देर सारा घी डाला गया हो , रसगुल्ले , नरम मीठा चावल , नरम सब्जियों का पुलाव आदि मरीज़ को दें।  खाने को नरम वस्तुएं ही देनी हैं, यह ध्यान रखे। ऊर्जा यानी तेल - घी का ध्यान रखना है। 

सावधानी 
तली हुई वस्तुएं रोगी को न दें यह उसके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। 

How To Take Care Of Acidity( Gas ,Khatti Dekare )

How To Take Care Of Acidity( Gas ,Khatti  Dekare ) In Hindi | Acidity Problem Solution In Hindi |  गैस, खट्टी डकारें जैसी समस्या से निजात 

अपच की समस्या आज बेहद आम हो गई है।  खानपान की अनियमितता ही अपच का मुख्य कारण है। पेट दर्द , खट्टी डकारे आना , छाती में जलन और गैस , अपच के सामान्य लक्षण हैं आज की जीवनशैली में व्यक्ति घर का भोजन करने के स्थान पर बाहरी खाने पर ज्यादा निर्भर होता है।  ऐसे में अनाप - शनाप जो भी मिले खाता रहता है , जो बिल्कुल भी उचित नहीं है।  घर के बाहर का भोजन भी अपच के कारणों में शामिल है। यह समस्या ऐसी है , जो हर उम्र वर्ग के महिला - पुरुष और बच्चों को प्रभावित करती है।  जबकि बेहद आसान तरीकों की मदद से अपच की समस्या से दो -दो हाथ किए जा सकते हैं।  लक्षणों के आधार पर अपच या गैस का उपचार होना चाहिए

खट्टी डकारें आना
कुछ लोग शिकायत करते हैं कि उन्हें खट्टी डकार ने परेशान कर रखा है। आमतौर पर लोग भोजन करने या पेय पीने में जल्दबाजी बरतते है , जिसकी वजह से आहार नली में अवरोध उत्पन्न होता है।  नतीजन, डकार की समस्या उत्पन्न होती है।  कार्बोनेट ड्रिंक्स ( आम भाषा में सोडा वाली ड्रिंक्स ) का ज्यादा सेवन , धूम्रपान और च्यूइंगम चबाने जैसे आम कारणों से भी डकार की समस्या उत्पन्न होती है।  धूम्रपान करने वाले लोगो को ज्यादा डकार आती है। 

डकार को सामान्य नहीं मानना चाहिए। यह संकेत है हमारे शरीर के कुछ खास अंगो के ढंग से काम न कर पाने का।  यदि खाने की नली और थैली के बीच का वॉल्व ढीला पड़ जाए , तो भी डकार आती है मेडिकल साइंस में इस स्थिति को ' हाइट्स हार्निया ' के रूप में पहचाना जाता है , जिसका उपचार शल्यक्रिया से ही संभव है।  खट्टी डकार के उपचार के कई आसान विकल्प मौजूद हैं।  थोड़ा - सा ( चुटकी भर ) बेकिंग सोडा पानी में घोलकर पीने से भी डकार आनी बंद हो जाती है।  इसके अलावा खाना चबाकर खाएं और धीरे - धीरे पानी पिये।  च्यूइंगम और कार्बोनेटेड पेय पदार्थ आदि के सेवन से बचें।  डकार आने की समस्या यदि बार - बार हो , तो तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें।  हो सकता है कि हाइट्स हार्निया की वजह से हो। कोई पेट की बीमारी पहले से है तो उपचार कराएं।  

पेट फूल जाना 
आश्चर्यजनक रूप से जब पेट में गैस बढ़ जाती है , तो पेट फूल-सा जाता है।  शोधकर्ताओं के मुताबिक जब आंत के अंदरुनी भाग ( नलिकाओं में ) में अतिरिक्त गैस पहुंच जाती है , तो पेट फूलने जैसी स्थितियां बनती है।  या फिर आंतो में किसी तरह की रुकावट भी पेट फूलने का कारण बन सकती है।  दरअसल , आंतो में मौजूद 20  से 60 प्रतिशत गैस का हिस्सा अतिरिक्त रूप से निगली हुई गैस का होता है।  हम जानते हैं कि हमारे शरीर में ऑक्सीजन और नाइट्रोजन गैसे ही मौजूद होती है।  इसके अलावा कोई भी गैस हमारे शरीर के अंदर मौजूद नहीं होती , सिवाय निगली हुई अतिरिक्त गैस के।  बाहर नहीं निकल पाने की स्थिति में यही गैस आंत और पेट में भर जाती है।  इसे गैस्ट्रिक बबल सिंड्रोम कहा जाता है। 

गैस से पेट फूल जाने पर रोगी को पेट दर्द महसूस होता है और बार - बार मोशन का अहसास होता है। पेट फूलने के सामान्य उपचारों में फाइबर , ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थ का सेवन और मल को मुलायम बनाने वाले भोज्य पदार्थ लेने चाहिए।  इसके अलावा जा सकता है।  यदि आपको इरिटेबल बाउल सिंड्रोम ( आईबीएस ) की शिकायत है , तो उसका नियमित इलाज भी इस समस्या का अंत कर सकता है। साथ ही शरीर में ग्लुटानप्रोटीन और लेक्टोज़ की मात्रा की जांच कराना भी आवश्यक होता है। 

क्या करें ? 
सबसे पहले अपने आहार में जरूरी परिवर्तन करें। कार्बोनेटेड पेय पदार्थ कम से कम लें। दाले , खासकर तुअर की दाल भी गैस का कारण बनती है।  इसलिए इसका संतुलित सेवन करें। खाना खाने के बाद थोड़ी देर यदि वज्रासन में बैठने से अपच या गैस की समस्या नहीं होती। 
वजन कम करें और नियमित व्यायाम का सहारा लें। 
कोशिश करें कि प्रतिदिन नियत समय पर ही भोजन करें। 
सुबह और शाम के भोजन के बीच लंबा अंतराल न रखें , बल्कि बीच -बीच में कुछ न कुछ खाते रहें। 
बैक्टीरिया की पहचान हो जाने पर डॉक्टरी परामर्श से एंटीबायोटिक लें। 
संतुलित आहार लें।  अति की स्थिति से बचें। 
भोजन के बाद थोड़ी देर जरूर टहलें , इससे पाचन में आसानी होगी और गैस या अपच की दशा नहीं आएगी।