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Prevent Prostate Glade & Bladder Problems In Hindi

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प्रोस्टेट एक ग्रंथि का नाम है जो केवल पुरुषों में पाई जाती है।  जन्म के समय इसका वजन नहीं के बराबर होता है।  20 की उम्र में इसका वजन 20 ग्राम होता है।  25 साल तक इसका वजन इतना ही रहता है।  45 साल में वजन में फिर से बढ़ोतरी होने लगती है। 
प्रोस्टेट का बढ़ना पेशाब में रुकावट पैदा करता है और यही इसका सर्वाधिक कारण है।  50 साल की उम्र के बाद इसके लक्षण शुरू होने लगते है।  पशिचमी देशों की अपेक्षा भारतीय पुरुषों में यह रोग कम उम्र में ही होने लगा है। 

लक्षण 
ऐसा पौरुष हार्मोन ' एंड्रोजन ' के कारण होता है।  जैसे ही प्रोस्टेट ग्रंथि का आकार बढ़ने लगता है तो मूत्र मार्ग पर दबाव बढ़ता है जिससे धीरे -धीरे पेशाब में रुकावट आने लगती है। 

पेशाब का बार -बार आना प्रारंभिक लक्षण है।  शुरू में यह लक्षण रात में ही होता है।  धीरे -धीरे यह मरीज को रोजमर्रा में भी परेशान करने लगता है।  कुछ समय बाद रोगी इस पर नियंत्रण नहीं कर पाता और मरीज को मूत्र त्याग करने में भी परेशानी होती है व अंत में बूंद -बूंद कर पेशाब आता रहता है।  कई बार मरीज शिकायत करते हैं कि उन्हें पेशाब नहीं आ रहा , यह मरीज के लिए प्रोस्टेट का प्रथम लक्षण भी हो सकता है।  कई बार पेशाब करने में दर्द या मूत्र शीघ्र न आना भी इस बीमारी के लक्षण हो सकते है। 

प्रोस्टेट के लक्षण होने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।  विशेषज्ञ इस संबंध में मरीज के रक्त व मूत्र का परीक्षण और सोनोग्राफी कराते है।  सोनोग्राफी में प्रोस्टेट के वजन व कितना मूत्र , मूत्राशय में विसर्जन के बाद रहता है इसका भी पता चलता है। अधिक मात्रा में मूत्र रहना गंभीरता का संकेत है।  प्रोस्टेट कैंसर का पता रक्त में प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन (पीएसए ) की जांच से लगाया जाता है। 

उपचार :
दवाइयां   
कई मामलों में इसका इलाज दवाओं से पूरी तरह हो जाता है।  वहीं कुछ मरीजों में मेडिसिन के प्रयोग से सर्जरी को अनिश्चित समय के लिए टाला जा सकता है।  50 वर्ष की उम्र में मरीज को अन्य कई बीमारियां भी होती है और एनेस्थीसिया देने में परेशानी आ सकती है इसलिए विशेषज्ञ सर्जरी की बजाय दवाओं को बेहतर मानते है। 

सर्जरी :  
TURP (Trans Uretheral Resection Of Prostate) ने अन्य सारी सर्जरी को हटा दिया है।  इस विधि में प्रोस्टेट के बढ़े हुए भाग को हटा दिया जाता है।  यह विधि अमूनन हर जिला स्तर के चिकित्सालयों में उपलब्ध है और इसमें मरीज पर ज्यादा खर्च भी नहीं आता है।  तीन दिन में मरीज को अस्पताल से छुटटी भी मिल जाती है।