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Asthma Symptoms , Causes, Treatment In Hindi | Asthma Articals

Asthma Symptoms , Causes, Treatment In Hindi | Asthma Articals| Dma Hindi Articals | Articals Of Asthma In Hindi | Health Articals Of Asthma | 

अगर सुनें कि किसी को अस्थमा हो गया है , यानी दमे का रोग, तो अमूमन ऐसी प्रतिक्रिया होती है , मानो जान पर घात आ पड़ी हो ! हां , यह मुश्किल हालात की ओर इशारा करता है , लेकिन इसे सम्भाला जा सकता है। 

दमा है क्या 
इसे समझने के लिए फेफड़ो की बनावट को समझना होगा। हम पेड़ को उल्टा खड़ा करने की कल्पना करें , यानी जड़ें ऊपर की ओर।  अब पेड़ के तने को सांस की वह मुख्य नली, यानी विंड पाइप मानें जो गले से उतरकर फेफड़ो तक जाती है।  यह मोटे कार्टिलेज की बनी होती है , सो सिकुड़ती नहीं।  इस तने से जुडी हैं पेड़ की छोटी - बड़ी शाखाएं।  ये है श्वास नलिकाएं , जिनकी दीवारें पतले कार्टिलेज की बनी होती हैं , इसीलिए सिकुड़ती हैं। 
इन नलिकाओं में हुए इन्फेक्शन के नतीजतन सूजन और सिकुड़न आती है , जो सांस अवरुद् करने लगती है।  फेफड़ों तक साफ़ हवा पहुँचाने वाली नलिकाएं पतली हो जाएंगी , तो दम फूलेगा और इंसान सांस लेने की कोशिश में तड़पने लगेगा।  यही है दमा , यानी अस्थमा। 

इसे ब्रांकाइटिस क्यों कह दिया जाता है ?
ब्रांकाइटिस तीन तरह का होता है।  चंद दिनों के फ्लू के कारण होने वाली खांसी जैसी ब्रांकाइटिस को एक्यूट ब्रांकाइटिस कहते हैं। तीसरी होती है क्रॉनिक ब्रांकाइटिस , जो सिगरेट आदि के पीने की वजह से सांस की नली में सिकुड़न के कारण होती है।  दूसरी और सबसे महत्व की बन गई है एलर्जिक ब्रांकाइटिस , जिसका ज़िक्र हम यहां कर रहे हैं , क्योंकि यही है अस्थमा के नाम से कुख्यात।  जिन लोगों को दमे के नाम से ही डर लगता है , उनके लिए इसका दूसरा नाम ही सच मान बैठना , दिल की तसल्ली के लिए तो ठीक है , लेकिन रोग को काबू में रखने के लिए उपाए दमे वाले ही अपनाने होंगे। 
 
कैसे होता है दमा ?
बार - बार  किसी ख़ास एलर्जी के सम्पर्क में आने पर खांसी , छींकें या नाक से पानी आने  को लम्बे समय पर नजरअंदाज करना इसका आधार बनता है।  एलर्जन की वजह से सांस की नलियां सूजने लगती हैं , सिकुड़ती हैं और बाद में उनकी भीतरी दीवारें लाल हो जाती हैं , उन पर बलगम जमने से खांसी उतपन्न होने लगती है।  यही है इन्फ्लेमेशन। 

क्यों होता है दमा ? 
एक कारण तो आनुवंशिक है।  यानी परिवार में कभी किसी को रहा हो , तो हो सकता है।  दूसरा वही है , वातावरण में मौजूद  एलर्जी के ट्रिगर्स।  अब अगर कोई एलर्जन को सहन न कर पाने वाली प्रतिरोधक क्षमता रखता हो , तो उस पर असर साफ़ और जल्दी होता है।  लम्बे समय तक जिनकी खांसी ठीक न होती हो , जुकाम जल्दी होता हो , धूल, धुएं, खास स्प्रे जैसे डियो, परफ्यूम आदि से छींकें आती हों , उन लोगों को खासतौर पर इस ओर ध्यान देना चाहिए। 

लक्षण कैसे पहचानें 
सदा कफ़ बना रहे , सफ़ेद गाड़ा बलगम आता हो , सांस लेने पर घर्र -घर्र की आवाज तथा सीने पर किसी न कसकर कपड़ा बांध दिया हो , ऐसा अहसास दमे के मुख्य लक्षणों में से हैं। 

दौरा किसे कहते हैं और क्यों ?
अगर अचानक आपके आस पास की हवा में से आक्सीजन घटा दे , तो आपका दम घुटने लगेगा न , वही हाल होता है दमे के मरीज़ का।  उसके फेफड़ों में हवा का रास्ता रुक जाता है।  सांस फूलेगी , दम घुटेगा।  लेकिन इससे आगे यह होता है कि मरीज़ के रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ जाती।  मरीज़ लगभग तड़पने लगता है।  ऐसे में केवल आक्सीजन देने से काम नहीं चलता।  कई बार मामला आईसीयू में ले जाने जितना गम्भीर हो जाता है। 

उपचार असल में प्रबंधन होता है 
दमे को जड़ से खत्म करना मुमकिन नहीं।  इसको नियंत्रण में रखा जा सकता है , वह भी लम्बे समय तक और आसानी से।  दवाइयों को सही समय पर ले और ट्रिगर्स एंटी इन्फ्लेमेशन दवाएं।  ये दोनों पम्प के सहारे बेहतर काम करती है।  रिलीफ , जैसा कि नाम से जाहिर है , राहत देने वाली दवा है।  अगर किसी एलर्जन के माहौल में जाने से खांसी आने लगे , तो रिलीवर पम्प के 8 पम्प ले लीजिए।  इसका इस्तेमाल हफ़्ते में दो तीन बार कर सकते है।  तीन बार से ज्यादा कर रहे हों , तो मान लीजिए कि सांस की नली में सूजन बढ़ रही है और अब रिलीवर कारगर नहीं होगा। 

अब बारी आती है एंटी इन्फ्लेमेशन दवाओं की।  ऐलोपैथी में सबसे कारगर और शक्तिशाली दवाएं है स्टेरॉयड्स।  दमे का उपचार इनसे सबसे अच्छी तरह से होता है , लेकिन ढेर सारी शंकाएं भी रही है कि इनके साइड इफेक्ट्स ख़तरनाक होते हैं।  पिछले 20 -25 सालों में हालात बदले है।  अब इनकी मात्रा का चालीस गुना से भी कम इन्हेलर में डालकर लिया जाना दमे का कारगर प्रबंधन करता है।  दवाओं का इतना कम डोज छोटे बच्चों के साथ - साथ गर्भवती स्त्रियों तक के लिए पूरी तरह सुरिक्षत पाया गया है। 

सावधान हो जाएं !
सांस उखड़ना, चलने, सीढ़ी चढ़ने पर सांस का फूलना, बोलने पर थकना महसूस करना - ऐसे तमाम लक्षण जहां स्टैमिना की कमी, दिल के रोग आदि के हो सकते है , वैसे ही ये दमे के सूचक भी हो सकते है।  असामान्य छींके , सतत खांसी , सांस फूलना और सीने में कसावट को गम्भीरता से लें।  दमा केवल मैनेज किया , यानी सम्भाला ही जा सकता है।  जो सही चिकित्सकीय सलाह पर चलते हैं , उन्हें इसे मैनेज करने में जरा भी कठिनाई महसूस नहीं होती।