Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Mobile, Microwaves Are Harmful To Pregnancy In Hindi

Mobile, Microwaves Are Harmful To Pregnancy In Hindi | Mobile , Microwaves Dangerous During Pregnancy | Cell, MicroWaves Use In Pregnancy May Be Harmful |

आपके मोबाइल फोन की घंटी या वाइब्रेशन गर्भ में पल रहे बच्चे को डराती है।  इससे कई बार उसकी नींद भी टूट सकती है।  न्यूयॉर्क के विकोफ हाइट्स मेडिकल सेंटर के शोध में यह बात सामने आयी है।  इस निष्कर्ष में पाया गया कि छठे से नौवे माह का हर गर्भस्थ शिशु मोबाइल की घंटी बजने पर चौंकता है।  इसलिए महिलाएं मोबाइल को पॉकेट में रखने की बजाय पर्स आदि में रखें।  वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बच्चों की तुलना में भ्रूण को माइक्रोवेव रेडिएशन का खतरा ज्यादा होता है क्योंकि उनकी त्वचा की परत काफी पतली होती है।  इसलिए प्रेग्नेंसी के दौरान ऐसे उपकरणों का प्रयोग सावधानी से करें। 

Prevent Prostate Glade & Bladder Problems In Hindi

Prevent Prostate Glade & Bladder Problems In Hindi | Prostate Problems And Cures |Prostate Problems Symptoms | Warning Sign Prostate Problems | Prostate Articals In Hindi 

प्रोस्टेट एक ग्रंथि का नाम है जो केवल पुरुषों में पाई जाती है।  जन्म के समय इसका वजन नहीं के बराबर होता है।  20 की उम्र में इसका वजन 20 ग्राम होता है।  25 साल तक इसका वजन इतना ही रहता है।  45 साल में वजन में फिर से बढ़ोतरी होने लगती है। 
प्रोस्टेट का बढ़ना पेशाब में रुकावट पैदा करता है और यही इसका सर्वाधिक कारण है।  50 साल की उम्र के बाद इसके लक्षण शुरू होने लगते है।  पशिचमी देशों की अपेक्षा भारतीय पुरुषों में यह रोग कम उम्र में ही होने लगा है। 

लक्षण 
ऐसा पौरुष हार्मोन ' एंड्रोजन ' के कारण होता है।  जैसे ही प्रोस्टेट ग्रंथि का आकार बढ़ने लगता है तो मूत्र मार्ग पर दबाव बढ़ता है जिससे धीरे -धीरे पेशाब में रुकावट आने लगती है। 

पेशाब का बार -बार आना प्रारंभिक लक्षण है।  शुरू में यह लक्षण रात में ही होता है।  धीरे -धीरे यह मरीज को रोजमर्रा में भी परेशान करने लगता है।  कुछ समय बाद रोगी इस पर नियंत्रण नहीं कर पाता और मरीज को मूत्र त्याग करने में भी परेशानी होती है व अंत में बूंद -बूंद कर पेशाब आता रहता है।  कई बार मरीज शिकायत करते हैं कि उन्हें पेशाब नहीं आ रहा , यह मरीज के लिए प्रोस्टेट का प्रथम लक्षण भी हो सकता है।  कई बार पेशाब करने में दर्द या मूत्र शीघ्र न आना भी इस बीमारी के लक्षण हो सकते है। 

प्रोस्टेट के लक्षण होने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।  विशेषज्ञ इस संबंध में मरीज के रक्त व मूत्र का परीक्षण और सोनोग्राफी कराते है।  सोनोग्राफी में प्रोस्टेट के वजन व कितना मूत्र , मूत्राशय में विसर्जन के बाद रहता है इसका भी पता चलता है। अधिक मात्रा में मूत्र रहना गंभीरता का संकेत है।  प्रोस्टेट कैंसर का पता रक्त में प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन (पीएसए ) की जांच से लगाया जाता है। 

उपचार :
दवाइयां   
कई मामलों में इसका इलाज दवाओं से पूरी तरह हो जाता है।  वहीं कुछ मरीजों में मेडिसिन के प्रयोग से सर्जरी को अनिश्चित समय के लिए टाला जा सकता है।  50 वर्ष की उम्र में मरीज को अन्य कई बीमारियां भी होती है और एनेस्थीसिया देने में परेशानी आ सकती है इसलिए विशेषज्ञ सर्जरी की बजाय दवाओं को बेहतर मानते है। 

सर्जरी :  
TURP (Trans Uretheral Resection Of Prostate) ने अन्य सारी सर्जरी को हटा दिया है।  इस विधि में प्रोस्टेट के बढ़े हुए भाग को हटा दिया जाता है।  यह विधि अमूनन हर जिला स्तर के चिकित्सालयों में उपलब्ध है और इसमें मरीज पर ज्यादा खर्च भी नहीं आता है।  तीन दिन में मरीज को अस्पताल से छुटटी भी मिल जाती है। 

Calcium Is Needed For Strong Bones

Calcium Is Needed For Strong Bones| Articals Of Bones In Hindi | Calcium Hindi Articals | How To Take Calcium For Every People 

माओं के लिए जरूरी है कि वे सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में लेती रहें क्योंकि उम्र के अलग -अलग पड़ाव पर इनकी भारी कमी होती रहती है और उन्हें हडिड्यों व मांशपेशियों की तकलीफों का सामना करना पड़ता है।  आइए जानते हैं इस संबंध में आवश्यक तथ्यों के बारे में।

बोन रॉबर से बचें
ह्रद्य , नर्व सिस्टम और मांशपेशियों तीनों के लिए भी कैल्शियम जरूरी होता है।  इसकी कमी से हडिड्यों के कमजोर और फ्रैक्चर होने की आशंका बढ़ने लगती है।  आमतौर पर जितना कैल्शियम हम भोजन में खाते है उसका 20 से 40 प्रतिशत ही हमारा शरीर एब्जॉर्ब कर पाता है और बढ़ती उम्र के साथ - साथ यह घटता चला जाता है।  स्टेरॉएड्स दवाएं , शराब पीना, धूम्रपान करना व तनाव लेना और व्यायाम न करना बोन रॉबर कहलाते है।  ये शरीर के दुश्मन बनकर कैल्शियम की कमी को बढ़ाते हैं और बोनमैरो (अस्थिमज्जा ) को खींचते हैं।  शरीर में विटामिन-सी , डी , के , फॉस्फोरस और मैगनीशियम की कमी होने से भी कैल्शियम घटने लगता है।

दूध व इससे बनी चीजें लें
आमतौर पर कहा जाता है कि रोजाना एक -दो गिलास दूध पीकर कैल्शियम की कमी को पूरा किया जा सकता है लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि दूध से जो पोषक तत्व शरीर को मिलते है उसकी कमी कोई और चीज पूरी नहीं कर सकती , वैसे ही अन्य पोषक तत्वों की कमी दूध पूरी नही कर सकता है।  इसलिए दूध को सम्पूर्ण आहार नहीं माना जा सकता।  जरूरी है कि केवल दूध को ही एकमात्र कैल्शियम का स्रोत न माना जाए बल्कि दही, छाछ व पनीर जैसे डेयरी प्रोडक्ट्स , हरी पत्तेदार सब्जियां , सूखे मेवे. अंकुरित अनाज, दानमेथी , चौलाई और तिल जो कैल्शियम से भरपूर व अन्य पोषक तत्वों के भी स्रोत हैं , उन्हें भी डाइट में शामिल करें।

कितनी मात्रा है जरूरी
हमारे शरीर में कैल्शियम को एब्जॉर्ब करने के लिए विटामिन -डी का होना जरूरी होता है इसके लिए दूध लें।  आमतौर पर एक वयस्क को एक दिन में 600 मिलिग्राम , गर्भवती महिला को 1200 मिलिग्राम , फीडिंग मदर को 1500 मिलिग्राम और मेनोपॉज के बाद महिलाओं को अधिकतम 1200 और कम से कम 800 मिलिग्राम कैल्शियम की मात्रा लेनी चाहिए।  एक गिलास दूध , एक कटोरी दही या एक कटोरी हरी सब्जी में 300 मिलिग्राम कैल्शियम मौजूद होता है।  रोजाना 800 से 1200 यूनिट विटामिन -डी भी लें। 

How To Take Maximum Benefits Of Curd(Dahi) In Hindi

How To Take Maximum Benefits Of Curd(Dahi) In Hindi । Dahi Ke Fayde Hindi Mein | Yogurt Ke Fayde | Benefits Of Dahi | 

अक्सर लोगों के मन में यह दुविधा रहती है कि दही किस मौसम में खाएं , कब खाएं और किस रोग में न खाएं। आयुर्वेद में दही खाना कल्पतरू के समान माना गया है जिससे शरीर के सारे रोग नष्ट हो जाते हैं।  इसलिए माएं घर में दही परोसते समय इन बातों का ध्यान रखें। 

इस मौसम में खाएं 
आम धारणा यही है कि बारिश के मौसम में दही नही खानी चाहिए लेकिन दही को बारिश और गर्मी के मौसम में खाना लाभकारी बताया गया है।  सर्दी के मौसम में दही नही खानी चाहिए।  दही ठंडा व भारी होता है इसलिए शीत ऋतु में खाने से मांसपेशियों व नसों में रुकावट आकर नर्व सिस्टम व चेतना कमजोर होने लगती है जिससे व्यक्ति में थकान , निद्रा और आलस जैसे लक्षण होने लगते है। 

डिनर में न लें 
दोपहर में 2 -3 बजे से पहले दही खाना लाभकारी माना गया है।  डिनर में लेने से यह फेफड़ों में संक्रमण, खांसी - जुकाम के अलावा जोड़ों की तकलीफ बढ़ाता है। 

इन रोगों में लाभकारी 
इसे खाली पेट सुबह के समय खाने से अल्सर, एसिडिटी , हाथ-पैरों के दर्द , नेत्र जलन व आंतों के रोगों में आराम मिलता है।  एक समय में 250 ग्राम दही खाया जा सकता है। 

ऐसे करें प्रयोग
 जिन्हें शरीर में कमजोरी , वजन न बढ़ने, अपच या भूख न लगने की समस्या हो उन्हें भोजन के बाद एक कटोरी मीठा दही खाना चाहिए।  दही को दूध व दूध से बनी चीजों के साथ न खाएं वरना अपच की समस्या हो सकती है। 

Isabgol (ईसबगोल) Ke Faide In Hindi | Isabgol Benefits & Uses Hindi

Isabgol (ईसबगोल) Ke Faide In Hindi | Isabgol Benefits & Uses Hindi। Isabgol Ke Gun | Benefits Of Isabgol | Uses Of Isabgol In hindi | Fayde Of Isabgol Hindi Mein

पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याओं के लिए ईसबगोल की भूसी सबसे ज्यादा फायदेमंद होती है। पेट की समस्या जैसे पेचिश में ईसबगोल की भूसी का लंबे समय से उपयोग हो रहा है।  कब्ज, दस्त , जोड़ों के दर्द , मल में रक्त, पाचनतंत्र संबंधी गड़बड़ी, शरीर में पानी की कमी , मोटापा व डायबिटीज में ईसबगोल की भूसी लाभकारी है। 

जोड़ों के दर्द, कब्ज व पाचनतंत्र को दुरुस्त करने के लिए रात के खाने के बाद एक गिलास दूध के साथ एक चम्मच ईसबगोल की भूसी लें। 

दस्त के दौरान रक्तस्राव हो या लंबे समय से कब्ज हो तो आधा कप पानी के साथ ईसबगोल की भूसी लें। 

ईसबगोल की भूसी 10 से 12 घंटे बाद असर करती है।  इसलिए अगर शाम को छह बजे के आसपास ईसबगोल का प्रयोग करेंगे तो सुबह समय पर मोशन होगा।  जब कब्ज ठीक हो जाए तो इसका सेवन बंद कर दें। 

वजन घटाने के लिए दिन में 3 बार इसे खाने से आधा घंटा पहले लेना उचित है।  दमे की शिकायत में सुबह - शाम दो -दो चम्मच ईसबगोल की भूसी गर्म पानी के साथ लेनी चाहिए। 

ईसबगोल का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता लेकिन लंबे समय तक प्रयोग न करें वरना इस पर निर्भर होने लगता है। 

करी पत्ते के फायदे | Kari Patta (Leaf) Benefits In Hindi

करी पत्ते के फायदे | Kari Patta (Leaf) Benefits In Hindi । Carry Leaf Uses In Hindi | Benefits Of Kari Patta Carry Leaf | Uses Of Kadi Patta Or Kadi Leaf

करी पता भोजन को स्वादिष्ट बनाने के साथ -साथ हमारी सेहत को भी दुरुस्त रखने में मददगार है।  जानते है इसके महत्वपूर्ण फायदों के बारे में। 

 *  पेट संबंधी रोगों में करी पत्तों का इस्तेमाल फायदेमंद होता है।  इसके लिए इसे दाल में तड़का लगाते समय या साउथ इंडियन फूड बनाते समय भी इस्तेमाल कर सकते है। 

*  भोजन में करी पत्ते के प्रयोग से पाचन क्रिया भी दुरुस्त रहती है। 

*  करी पता मोटापे की समस्या को दूर करता है।  रोजाना इन पत्तों को चबाने से वजन कम होता है। 

*  मुंह में छाले और सिरदर्द की समस्या में ताजा करी पत्तों को चबाने से वजन कम होता है। 

*  करी पत्ते में आयरन,  कैल्शियम और फॉस्फोरस भरपूर मात्रा में होता है जिससे इन्हें प्रयोग करने से बाल सफेद नही होते।  यह सीने से कफ को बाहर निकालता है।  लाभ के लिए एक चम्मच शहद को एक चम्मच करी पत्ते के रस में मिलाकर प्रयोग करें। 

*  कुछ करी पत्तों को पीसकर इसमें नींबू की कुछ बूंदे और थोड़ी चीनी मिलाकर खाने से उल्टी की तकलीफ में राहत मिलती है।  नियमित रूप से इन पत्तों का प्रयोग डायबीटिज के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है। 

Gharelu upay For Fitness In Hindi

Gharelu upay For Fitness In Hindi | Weightloss Ke Desi Nushke Hindi Mein | Fitness Ke Gharelu Upay | Weightloss Ke Gharelu Upay | Fitness Articals In Hindi

अक्सर पुरानी तस्वीरें देखकर अपने बढ़े हुए वजन पर गुस्सा आता है और आप कल्पना करती है कि काश पहले जितनी पतली हो जाएं।  आज मैं आपको कुछ आयुर्वेदिक उपाय बताती हो जिन्हें अपनाकर आप बढ़ते वजन को नियंत्रित कर सकती है। 

खड़े होकर न खाएं 
किचन में खड़े होकर खाने या खाना खाने के बाद फौरन सो जाने से पाचनक्रिया ठीक से नहीं हो पाती और शरीर में वसा जमने से धीरे - धीरे वजन बढ़ने लगता है। 

तेल बदलकर प्रयोग करें 

जिस तरह हम मौसम के अनुसार फल और सब्जियां खाते हैं , उसी तरह खाद्य तेलों को भी बदल - बदल कर प्रयोग करना चाहिए क्योंकि हर तेल की अपनी तासीर होती है।  जैसे सर्दी के दिनों में तिल का तेल फायदेमंद होता है क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है।  इसी तरह सरसों का तेल वसा को काटने का काम करता है।  लेकिन जो लोग वजन कम करना चाहते हैं वे मूंगफली के तेल का इस्तेमाल न करें क्योंकि इसमें फैट की मात्रा अधिक होती है। 

तीन चरण में भोजन करें 

आमतौर पर महिलाएं घरवालों को खिलाने के चककर में खुद भूखी रह जाती हैं या उनके भोजन में लंबे समय का अंतराल हो जाता है जिससे पेट में एसिड बनने लगता है इसलिए ऐसा करने से बचें।  खाना खाते समय पहले मीठा खाएं इससे पेट में एसिड कम होता है।  फिर नमकीन भोजन करें ताकि भूख शांत हो और बाद में छाछ पिएं इससे आंतो की क्षमता में वृदि होती है। 

घरेलू उपाय 

* एक चम्मच दनमेथी को रात में भिगो दें।  सुबह इसे चबाकर खा लें और एक गिलास सामान्य पानी पी लें। 

* चावल को बनाते समय इसका मांड न निकाले इससे मोटापा कम होता है। 


* खाने से आधा घंटा पहले एक चम्मच ईसबगोल की भूसी सामान्य पानी से लें। इससे भूख कम लगती है और व्यक्ति अनावश्यक भोजन नहीं करता। 


* वजन घटाने के लिए मसूर, मूंग, अरहर, शहद, करेला, परवल, छाछ , दानामेथी , पत्तेदार सब्जियां और जौ की रोटी लाभकारी होती है। 

Asthma Symptoms , Causes, Treatment In Hindi | Asthma Articals

Asthma Symptoms , Causes, Treatment In Hindi | Asthma Articals| Dma Hindi Articals | Articals Of Asthma In Hindi | Health Articals Of Asthma | 

अगर सुनें कि किसी को अस्थमा हो गया है , यानी दमे का रोग, तो अमूमन ऐसी प्रतिक्रिया होती है , मानो जान पर घात आ पड़ी हो ! हां , यह मुश्किल हालात की ओर इशारा करता है , लेकिन इसे सम्भाला जा सकता है। 

दमा है क्या 
इसे समझने के लिए फेफड़ो की बनावट को समझना होगा। हम पेड़ को उल्टा खड़ा करने की कल्पना करें , यानी जड़ें ऊपर की ओर।  अब पेड़ के तने को सांस की वह मुख्य नली, यानी विंड पाइप मानें जो गले से उतरकर फेफड़ो तक जाती है।  यह मोटे कार्टिलेज की बनी होती है , सो सिकुड़ती नहीं।  इस तने से जुडी हैं पेड़ की छोटी - बड़ी शाखाएं।  ये है श्वास नलिकाएं , जिनकी दीवारें पतले कार्टिलेज की बनी होती हैं , इसीलिए सिकुड़ती हैं। 
इन नलिकाओं में हुए इन्फेक्शन के नतीजतन सूजन और सिकुड़न आती है , जो सांस अवरुद् करने लगती है।  फेफड़ों तक साफ़ हवा पहुँचाने वाली नलिकाएं पतली हो जाएंगी , तो दम फूलेगा और इंसान सांस लेने की कोशिश में तड़पने लगेगा।  यही है दमा , यानी अस्थमा। 

इसे ब्रांकाइटिस क्यों कह दिया जाता है ?
ब्रांकाइटिस तीन तरह का होता है।  चंद दिनों के फ्लू के कारण होने वाली खांसी जैसी ब्रांकाइटिस को एक्यूट ब्रांकाइटिस कहते हैं। तीसरी होती है क्रॉनिक ब्रांकाइटिस , जो सिगरेट आदि के पीने की वजह से सांस की नली में सिकुड़न के कारण होती है।  दूसरी और सबसे महत्व की बन गई है एलर्जिक ब्रांकाइटिस , जिसका ज़िक्र हम यहां कर रहे हैं , क्योंकि यही है अस्थमा के नाम से कुख्यात।  जिन लोगों को दमे के नाम से ही डर लगता है , उनके लिए इसका दूसरा नाम ही सच मान बैठना , दिल की तसल्ली के लिए तो ठीक है , लेकिन रोग को काबू में रखने के लिए उपाए दमे वाले ही अपनाने होंगे। 
 
कैसे होता है दमा ?
बार - बार  किसी ख़ास एलर्जी के सम्पर्क में आने पर खांसी , छींकें या नाक से पानी आने  को लम्बे समय पर नजरअंदाज करना इसका आधार बनता है।  एलर्जन की वजह से सांस की नलियां सूजने लगती हैं , सिकुड़ती हैं और बाद में उनकी भीतरी दीवारें लाल हो जाती हैं , उन पर बलगम जमने से खांसी उतपन्न होने लगती है।  यही है इन्फ्लेमेशन। 

क्यों होता है दमा ? 
एक कारण तो आनुवंशिक है।  यानी परिवार में कभी किसी को रहा हो , तो हो सकता है।  दूसरा वही है , वातावरण में मौजूद  एलर्जी के ट्रिगर्स।  अब अगर कोई एलर्जन को सहन न कर पाने वाली प्रतिरोधक क्षमता रखता हो , तो उस पर असर साफ़ और जल्दी होता है।  लम्बे समय तक जिनकी खांसी ठीक न होती हो , जुकाम जल्दी होता हो , धूल, धुएं, खास स्प्रे जैसे डियो, परफ्यूम आदि से छींकें आती हों , उन लोगों को खासतौर पर इस ओर ध्यान देना चाहिए। 

लक्षण कैसे पहचानें 
सदा कफ़ बना रहे , सफ़ेद गाड़ा बलगम आता हो , सांस लेने पर घर्र -घर्र की आवाज तथा सीने पर किसी न कसकर कपड़ा बांध दिया हो , ऐसा अहसास दमे के मुख्य लक्षणों में से हैं। 

दौरा किसे कहते हैं और क्यों ?
अगर अचानक आपके आस पास की हवा में से आक्सीजन घटा दे , तो आपका दम घुटने लगेगा न , वही हाल होता है दमे के मरीज़ का।  उसके फेफड़ों में हवा का रास्ता रुक जाता है।  सांस फूलेगी , दम घुटेगा।  लेकिन इससे आगे यह होता है कि मरीज़ के रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ जाती।  मरीज़ लगभग तड़पने लगता है।  ऐसे में केवल आक्सीजन देने से काम नहीं चलता।  कई बार मामला आईसीयू में ले जाने जितना गम्भीर हो जाता है। 

उपचार असल में प्रबंधन होता है 
दमे को जड़ से खत्म करना मुमकिन नहीं।  इसको नियंत्रण में रखा जा सकता है , वह भी लम्बे समय तक और आसानी से।  दवाइयों को सही समय पर ले और ट्रिगर्स एंटी इन्फ्लेमेशन दवाएं।  ये दोनों पम्प के सहारे बेहतर काम करती है।  रिलीफ , जैसा कि नाम से जाहिर है , राहत देने वाली दवा है।  अगर किसी एलर्जन के माहौल में जाने से खांसी आने लगे , तो रिलीवर पम्प के 8 पम्प ले लीजिए।  इसका इस्तेमाल हफ़्ते में दो तीन बार कर सकते है।  तीन बार से ज्यादा कर रहे हों , तो मान लीजिए कि सांस की नली में सूजन बढ़ रही है और अब रिलीवर कारगर नहीं होगा। 

अब बारी आती है एंटी इन्फ्लेमेशन दवाओं की।  ऐलोपैथी में सबसे कारगर और शक्तिशाली दवाएं है स्टेरॉयड्स।  दमे का उपचार इनसे सबसे अच्छी तरह से होता है , लेकिन ढेर सारी शंकाएं भी रही है कि इनके साइड इफेक्ट्स ख़तरनाक होते हैं।  पिछले 20 -25 सालों में हालात बदले है।  अब इनकी मात्रा का चालीस गुना से भी कम इन्हेलर में डालकर लिया जाना दमे का कारगर प्रबंधन करता है।  दवाओं का इतना कम डोज छोटे बच्चों के साथ - साथ गर्भवती स्त्रियों तक के लिए पूरी तरह सुरिक्षत पाया गया है। 

सावधान हो जाएं !
सांस उखड़ना, चलने, सीढ़ी चढ़ने पर सांस का फूलना, बोलने पर थकना महसूस करना - ऐसे तमाम लक्षण जहां स्टैमिना की कमी, दिल के रोग आदि के हो सकते है , वैसे ही ये दमे के सूचक भी हो सकते है।  असामान्य छींके , सतत खांसी , सांस फूलना और सीने में कसावट को गम्भीरता से लें।  दमा केवल मैनेज किया , यानी सम्भाला ही जा सकता है।  जो सही चिकित्सकीय सलाह पर चलते हैं , उन्हें इसे मैनेज करने में जरा भी कठिनाई महसूस नहीं होती।