Incomplete Medicine Course, Increase Problems | Incomplete Medicine Course Articals In Hindi | Articals Of Incomplete Medicine Course In Hindi
हममें से अधिकांश लोग समस्या के गम्भीर रहने तक ही दवाओं की ख़ुराक और वक़्त को लेकर गम्भीर नजर आते हैं। परेशानी कम हुई नहीं कि दवा लेने के प्रति लापरवाह हो जाते हैं। वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि ज्यादा एंटीबायोटिक्स शरीर को नुक़सान पहुंचाते हैं , इसलिए डॉक्टर पांच दिन की दवा लिखे, तो तीन दिन की ही खाओ। जबकि दवाओं ( ख़ासकर एंटीबायोटिक्स ) की अधूरी ख़ुराक आपकी मुसीबतें बढ़ा सकती है। ग़ौर कीजिए , यह गलती कितनी भारी पड़ सकती है।
मरीज़ को दी जाने वाली दवाओं की ख़ुराक मर्ज़ और उसकी गम्भीरता पर निर्भर करती है यदि दवा की ख़ुराक बीच में ही छोड़ दी जाये, तो रोग जड़ से नहीं मिटेगा। स्वाभाविक है कि इस स्थिति में मर्ज़ वापस लौटेगा। उदाहरण के लिए किसी को वायरल है , तो एंटीबायोटिक्स के असर के कारण रोगाणु मरेंगे और संक्रमण कम होगा। ऐसे में दवाओं की की ख़ुराक अधूरी छोड़ दी, तो बच गए रोगाणु अपनी संख्या बढ़ाकर दोबारा धावा बोलेंगे। वहीं कमज़ोर हो चुका शरीर उनका सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होगा , तो परेशानी और बढ़ेगी।
आम धारणा है कि एंटीबायोटिक दवाएं लेने से किडनी, लीवर , ह्रदय आदि को नुकसान पहुंच सकता है। साथ ही इन दवाओं के कारण बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। जबकि पूरा सच है कि एंटीबायोटिक के दुष्प्रभावों का सामना तब करना पड़ता है , जब उनका सेवन आवश्यकता से अधिक मात्रा में किया जाए। डॉक्टर मरीज की जरूरत के आधार पर एंटीबायोटिक की ख़ुराक निर्धारित करते हैं , इसलिए उनके द्वारा सुझाई गई दवाओं की पूरी ख़ुराक लेने पर नुकसान नहीं पहुंचेगा।
पहली बार कोई रोग सताए, तो कम पावर की एंटीबायोटिक दवाओं से फ़ायदा मिल जाता है। लेकिन उसी मर्ज़ के लौटने या दोबारा होने की स्थिति में मरीज पर पहले दी गई दवाओं से ज्यादा पावर ( क्षमता ) वाली एंटीबायोटिक ही असर दिखाती हैं। यानी यदि आप कम एंटीबायोटिक लेने के चककर में दवाओं का कोर्स पूरा नहीं करते हैं , तो आपको पहले से ज्यादा और अधिक पावर वाली दवाएं लेनी पड़ सकती हैं।
लक्षण मिटाने वाली दवा लेने से मरीज की पीड़ा कम हो जाती है। ऐसे में संक्रमण के लक्षण ( पीड़ा - बुखार , दर्द, चककर आना आदि ) नजर नहीं आते, लेकिन अधूरी ख़ुराक के कारण समस्या जड़ से नहीं मिटती। नतीजतन, शरीर के अंदर सुप्तावस्था में मौजूद संक्रमण भीतर ही भीतर नुक़सान पहुंचता रहता है , लेकिन उसका पता चलने तक साधारण बीमारी एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या का रूप धर चुकी होती है।
विभिन्न बीमारियों के लिए जिम्मेदार रोगाणु अपनी क्षमता विकसित करते रहते हैं। ऐसे में एक सीमा के बाद एंटीबायोटिक भी बेअसर हो जाती हैं। अक्सर देखा गया है कि टायफाइड, पीलिया आदि गम्भीर बीमारियों के शिकार मरीज़ पर एंटीबायोटिक का पर्याप्त असर नज़र नहीं आता। इसलिए एक बार में दवा की पूरी ख़ुराक लेकर मर्ज़ से निजात पाने में ही समझदारी है।
दवा की अधूरी ख़ुराक के चलते बच गया संक्रमण शरीर में फैलकर रोगप्रतिरोधक क्षमता कम करता जाता है। नतीजतन , अन्य रोगों से घिरने की आशंका भी बढ़ जाती है।
दवाओं की अधूरी ख़ुराक सेहत ही नहीं, आपकी जेब पर भी भारी पड़ती है। मसलन, टीबी की शुरुआती अवस्था में मरीज़ को 6 महीने तक दवाएं लेने की सलाह दी जाती है , जिनका ख़र्च कुछ हजार रुपयों तक सिमट जाता है। वहीं दवाओं की पूरी ख़ुराक न लेने पर मरीज़ की स्थिति बिगड़ जाए, तो उसके इलाज में लाखों रुपए ख़र्च हो जाते हैं।
हममें से अधिकांश लोग समस्या के गम्भीर रहने तक ही दवाओं की ख़ुराक और वक़्त को लेकर गम्भीर नजर आते हैं। परेशानी कम हुई नहीं कि दवा लेने के प्रति लापरवाह हो जाते हैं। वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि ज्यादा एंटीबायोटिक्स शरीर को नुक़सान पहुंचाते हैं , इसलिए डॉक्टर पांच दिन की दवा लिखे, तो तीन दिन की ही खाओ। जबकि दवाओं ( ख़ासकर एंटीबायोटिक्स ) की अधूरी ख़ुराक आपकी मुसीबतें बढ़ा सकती है। ग़ौर कीजिए , यह गलती कितनी भारी पड़ सकती है।
मरीज़ को दी जाने वाली दवाओं की ख़ुराक मर्ज़ और उसकी गम्भीरता पर निर्भर करती है यदि दवा की ख़ुराक बीच में ही छोड़ दी जाये, तो रोग जड़ से नहीं मिटेगा। स्वाभाविक है कि इस स्थिति में मर्ज़ वापस लौटेगा। उदाहरण के लिए किसी को वायरल है , तो एंटीबायोटिक्स के असर के कारण रोगाणु मरेंगे और संक्रमण कम होगा। ऐसे में दवाओं की की ख़ुराक अधूरी छोड़ दी, तो बच गए रोगाणु अपनी संख्या बढ़ाकर दोबारा धावा बोलेंगे। वहीं कमज़ोर हो चुका शरीर उनका सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होगा , तो परेशानी और बढ़ेगी।
आम धारणा है कि एंटीबायोटिक दवाएं लेने से किडनी, लीवर , ह्रदय आदि को नुकसान पहुंच सकता है। साथ ही इन दवाओं के कारण बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है। जबकि पूरा सच है कि एंटीबायोटिक के दुष्प्रभावों का सामना तब करना पड़ता है , जब उनका सेवन आवश्यकता से अधिक मात्रा में किया जाए। डॉक्टर मरीज की जरूरत के आधार पर एंटीबायोटिक की ख़ुराक निर्धारित करते हैं , इसलिए उनके द्वारा सुझाई गई दवाओं की पूरी ख़ुराक लेने पर नुकसान नहीं पहुंचेगा।
पहली बार कोई रोग सताए, तो कम पावर की एंटीबायोटिक दवाओं से फ़ायदा मिल जाता है। लेकिन उसी मर्ज़ के लौटने या दोबारा होने की स्थिति में मरीज पर पहले दी गई दवाओं से ज्यादा पावर ( क्षमता ) वाली एंटीबायोटिक ही असर दिखाती हैं। यानी यदि आप कम एंटीबायोटिक लेने के चककर में दवाओं का कोर्स पूरा नहीं करते हैं , तो आपको पहले से ज्यादा और अधिक पावर वाली दवाएं लेनी पड़ सकती हैं।
लक्षण मिटाने वाली दवा लेने से मरीज की पीड़ा कम हो जाती है। ऐसे में संक्रमण के लक्षण ( पीड़ा - बुखार , दर्द, चककर आना आदि ) नजर नहीं आते, लेकिन अधूरी ख़ुराक के कारण समस्या जड़ से नहीं मिटती। नतीजतन, शरीर के अंदर सुप्तावस्था में मौजूद संक्रमण भीतर ही भीतर नुक़सान पहुंचता रहता है , लेकिन उसका पता चलने तक साधारण बीमारी एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या का रूप धर चुकी होती है।
विभिन्न बीमारियों के लिए जिम्मेदार रोगाणु अपनी क्षमता विकसित करते रहते हैं। ऐसे में एक सीमा के बाद एंटीबायोटिक भी बेअसर हो जाती हैं। अक्सर देखा गया है कि टायफाइड, पीलिया आदि गम्भीर बीमारियों के शिकार मरीज़ पर एंटीबायोटिक का पर्याप्त असर नज़र नहीं आता। इसलिए एक बार में दवा की पूरी ख़ुराक लेकर मर्ज़ से निजात पाने में ही समझदारी है।
दवा की अधूरी ख़ुराक के चलते बच गया संक्रमण शरीर में फैलकर रोगप्रतिरोधक क्षमता कम करता जाता है। नतीजतन , अन्य रोगों से घिरने की आशंका भी बढ़ जाती है।
दवाओं की अधूरी ख़ुराक सेहत ही नहीं, आपकी जेब पर भी भारी पड़ती है। मसलन, टीबी की शुरुआती अवस्था में मरीज़ को 6 महीने तक दवाएं लेने की सलाह दी जाती है , जिनका ख़र्च कुछ हजार रुपयों तक सिमट जाता है। वहीं दवाओं की पूरी ख़ुराक न लेने पर मरीज़ की स्थिति बिगड़ जाए, तो उसके इलाज में लाखों रुपए ख़र्च हो जाते हैं।