रम्भा एकादशी व्रत कथा| Rambha ekadshi vrat katha in hindi | Rambha Ekadshi Vrat Kahani | Rambha Ekadshi Hindi Kahani |
यह व्रत कार्तिक
मास की कृष्ण
पक्ष की एकादशी
को रखा जाता
है | इस
दिन
भगवान कृष्ण का
सम्पूर्ण वस्तुओ से पूजन,
नैवेद्य तथा आरती
कर प्रसाद वितरित
करके ब्राह्मणो को
भोजन कराये तथा
दक्षिणा दे
|
पुराने समय में मुचुकुन्द नाम का दानी, धर्मात्मा राजा था | वह प्रतीक एकादशी का व्रत करता था | राज्य की प्रजा भी उसके देखा देखी प्रत्येक एकादशी का व्रत रखने लगी थी | राजा के चन्द्रभागा नाम की एक पुत्री थी | वह भी एकादशी का व्रत करती थी | उसका विवाह राजा चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ | शोभन राजा के साथ ही रहता था | इसलिए वह भी एकादशी का व्रत करने लगा | कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करने लगा | कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को शोभन ने एकादशी का व्रत रखा परन्तु भूख से व्याकुल होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया |इससे राजा, रानी और पुत्री बहुत दुखी हुए परन्तु एकादशी का व्रत करते रहे | शोभन को व्रत के प्रभाव से मन्दराचल पर्वत पर स्थित देव नगर में आवास मिला | वह उसकी सेवा में रम्भादि अप्सराएं ततपर थी | अचानक एक दिन मुचुकुन्द मंदराचल पर्वत पर गए तो वह पर उन्होंने शोभन को देखा | घर आकर उन्होंने सब वृतांत रानी एवं पुत्री को बताया | पुत्री यह समाचार पाकर पति के पास चली गयी तथा दोनों सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे | उनकी सेवा माँ रम्भादिक अप्सराएं लगी रहती थीं | इसलिए इस एकादशी को रम्भा एकादशी कहते हैं