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आँखों के काले घेरे मिटाये | Removing Dark circles





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सर्दियों में होंठो की देखभाल | Lips Care Tips In Winter






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हरे पानी से कब्ज का इलाज | constipation Treatment At Home


सुस्ती दूर भगाने का इलाज | Remove Laziness tips in hindi

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गोवर्धन पूजा विधि तथा कथा| Govardhan Puja Vidhi , Katha In Hindi

गोवर्धन पूजा विधि तथा कथा| Govardhan Puja Vidhi , Katha In Hindi | Govardhan Puja Story | Govardhan Puja Kahani Hindi


कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव  मनाया जाता है | इस दिन बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली आदि उत्सव भी सम्पन्न होते है | यह ब्रजवासियो का मुख्य त्यौहार है अन्नकूट या गोवर्धन पूजा कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर  युग से प्रारम्ब हुई | गाय  बेल आदि पशुओ को स्नान कराकर फूल, माला, धुप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है | गायों  को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतरी जाती है तथा प्रदक्षिण।  की जाती है | गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मोली, रोली, चावल फूल, दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है तथा परिक्रमा करते हैं |

एक बार श्री कृष्ण गोप गोपियों के साथ गाये चरते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई  में पहुंचे वहां उन्होंने देखा की हजारो गोपिया गोवर्धन पर्वत के पास छप्पन प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच गाकर उत्सव  मना रही है | श्री कृष्ण के पूछने पर गोपियों ने बताया की मेघो के स्वामी इंद्र को प्रसन्न रखने के लिए प्रतिवर्ष यह उत्सव होता है | कृष्ण बोले यदि देवता प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएं तब तो इस उत्सव की कुछ कीमत है | गोपियाँ बोली तुम्हे इंद्र की निंदा नही करनी चाहिए | इंद्र की कृपा से ही वर्षा  होती है | श्री कृष्ण बोले  वर्षा  तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है हमे इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए | सभी गोप ग्वाले अपने अपने घरो से पकवान लेकर श्री कृष्ण की बताई विधि से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे इंद्र को जब पता चला की इस वर्ष मेरी पूजा कर गोवर्धन की पूजा की जा रही है तो वह बहुत कुपित हुए और मेघो को आज्ञा दी कि  गोकुल में जाकर इतना पानी बरसाए की वहां पर प्रलय का दृश्य उतपन्न हो जाये | मेघ इंद्र की आज्ञा  से मूसलाधार वर्षा  करने लगे | श्री कृष्ण ने सब गोप गोपियों को आदेश दिया की सब अपने गाय बछड़ो को लेकर गोवर्धन पर्वत  की तराई  में पहुंच जाये | गोवर्धन ही मेघो से रक्षा करेंगे| सब गोप गोपियाँ अपने अपने गाय बछड़ो , बेलो को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई  में पहुंच गए| श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ट ऊँगली पर धारण कर छाता  बना  दिया | सब ब्रजवासी सात  दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण में रहे | सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियो पर एक जल की बून्द भी नही पड़ी | ब्रह्माजी ने इंद्र को बताया की पृथ्वी पर श्री कृष्ण ने जन्म ले लिया है | उनसे तुम्हारा वर लेना उचित नही है | श्री कृष्ण अवतार की बात जानकर इंद्रदेव अपनी मूर्खता पर बहुत लिज्जत हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना करने लगे | श्रीकृष्ण ने सातवे दिन  गोवर्धन पर्वत को नीचे  रखकर ब्रजवासियो से कहा कि  अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो | तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित हो गया |


नरक चतुर्दशी कथा | Nark Chturdshi Katha In Hindi

नरक चतुर्दशी कथा | Nark Chturdshi Katha In Hindi । नरक चतुर्दशी कहानी । Nark Chturdshi Story 


कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी नरक चतुर्दशी के रूप में मनाई जाती है | नरक से मुक्ति पाने के लिए प्रातः  तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) पौधे  सहित जल में स्नान करना चाहिए| शाम को यमराज के लिए दीपदान करते हैं | कहा जाता है कि  इसी दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नमक दैत्य  का वध किया था प्राचीन समय में रन्तिदेवी नमक राजा हुए थे | वह पूर्व जन्म में एक धर्मात्मा तथा दानी थे | इस जन्म में भी वे दान आदि किया करते थे | उनके अंतिम समय यमदूत उन्हें नरक में ले जाने के लिए आये | राजा ने कहा में तो दान दक्षिणा तथा सत्यकर्म करता रहा हूँ | फिर मुझे नरक में क्यों ले जाना चाहते हो यमदूतों ने बताया की एक बार तुम्हारे द्वार से भूख से व्याकुल ब्राह्मण लोट गया था इसलिए तुम्हे नरक में जाना पड़ेगा | यह सुनकर राजा ने यमदूतों से विनती की की मेरी आयु एक वर्ष और बढ़ा  दी जाये| यमदूतों ने बिना सोच विचार किये राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली | यमदूत चले गए | राजा ने ऋषियों के पास जाकर इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा ऋषियों  ने बतलाया - हे राजन ! तुम कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखकर भगवान कृष्ण का पूजन करना, ब्राह्मणो को भोजन कराकर दक्षिणा देना तथा अपना अपराध ब्राह्मणों  को बताकर उनसे क्षमा याचना करना, तब तुम पाप से मुक्त हो जाओगे | कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को राजा ने नियम पूर्वक व्रत रखा और विष्णु लोक को चला गया |

रम्भा एकादशी व्रत कथा| Rambha ekadshi vrat katha in hindi

रम्भा एकादशी व्रत कथा| Rambha ekadshi vrat katha in hindi | Rambha Ekadshi Vrat Kahani | Rambha Ekadshi Hindi Kahani | 

यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है | इस
दिन भगवान कृष्ण का सम्पूर्ण वस्तुओ से पूजन, नैवेद्य तथा आरती कर प्रसाद वितरित करके ब्राह्मणो को भोजन कराये तथा दक्षिणा   दे |

पुराने समय में मुचुकुन्द नाम का दानी, धर्मात्मा राजा था | वह प्रतीक एकादशी का व्रत करता था | राज्य की प्रजा भी उसके देखा देखी प्रत्येक एकादशी का  व्रत रखने लगी थी | राजा के चन्द्रभागा नाम की एक पुत्री थी | वह भी एकादशी का व्रत करती थी | उसका विवाह राजा चंद्रसेन के  पुत्र शोभन के साथ हुआ | शोभन राजा के साथ ही रहता था | इसलिए वह भी एकादशी का व्रत करने लगा | कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करने लगा | कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को शोभन ने एकादशी का व्रत रखा परन्तु भूख से व्याकुल होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया |इससे राजा, रानी और पुत्री बहुत दुखी हुए परन्तु एकादशी का व्रत करते रहे | शोभन को व्रत के प्रभाव से मन्दराचल  पर्वत पर स्थित देव नगर में आवास मिला | वह उसकी सेवा में रम्भादि अप्सराएं ततपर  थी | अचानक एक दिन मुचुकुन्द मंदराचल पर्वत पर गए तो वह पर उन्होंने शोभन को देखा | घर आकर उन्होंने सब वृतांत रानी एवं पुत्री को बताया | पुत्री यह समाचार पाकर पति  के पास चली गयी तथा दोनों सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे | उनकी सेवा माँ रम्भादिक अप्सराएं लगी रहती थीं | इसलिए इस एकादशी को रम्भा एकादशी कहते हैं