रूह के रिश्तो
की यह गहराइयां
तो देखिए,
चोट लगती है
हमें और दर्द
मां को होता
है।
मेरी तक़दीर में कभी
कोई गम नही
होता,
अगर तक़दीर लिखने का
हक़ मेरी माँ
को होता
पहाड़ो जैसे सदमे
झेलती है उम्र
भर लेकिन,
इक औलाद की
तकलीफ़ से माँ
टूट जाती है
मेरी ख्वाहिश है की
मै फिर से
फरिश्ता हो जाऊ,
माँ से इस
तरह लिपटु की
बच्चा हो जाऊ।
हजारों गम हो
जिंदगी में फिर
भी खुशी से
फूल जाता हूं
मैं जब हंसती
है मेरी मां
मैं हर गम
भूल जाता हूं
यूँ तो मैंने
बुलन्दियों के हर
निशान को छुआ,
जब माँ ने
गोद में उठाया
तो आसमान को
छुआ